झुकुडी मा उमाल ऐ जान्दू
त्वे देखी मन कंयारू ह्वे जान्दु
बिराण हुय्यां युं थोला खोला
किले उजडा होला युं रोला
सूनी डांडी रीती गाढ गदनियों मा
उदास हिलांस कु विलाप
घसियारियों ते बुलोण लगी
रोंतेली धारों की रंगत
नयां जमाना का बथों मा उडिगे
बांजा पुंगडी रूणी लगी
हल्य्या बल्दों ते तरसोणी लगी
…….. बलबीर राणा
भैजी
24 Dec 2012
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें