बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

मितें बारामासी हिलांस न बणावा।

के दिन रूडी ण सुखायी
केदिन बरखा ल भिजाई
मेरु यकुली पराण,
यकुली बोल्या बणी रायी।

द्विदिन तुम घोर औन्दा ,माया का कांडा बूती जांदा,
ज्वानी का चोमास भर , मेरी झिकुडी बुडेनी रैंदा,
अब नि रय्यीं ये पराणी मा इत्गा शक्ति पीड़ा सोणे की,
हट ये पराणी भी अफु दगडी ली जावा,
मितें बारामासी हिलांस न बणावा।

कबैर तलक रेलू इनी यकुली ढपकुणी,
गाड गद्नियों मा बिरह गीत गाणी,यूँ गीत सुणी हिलांस भी रुणी रुणी अब थकगेनी,
घुघूती कु गोला घुराण मा फूली गेनी,
अब ना इत्गा अग्नि परीक्षा करावा,
मितें बारामासी हिलांस न बणावा।

पिंगला प्योंली की प्रीत से भी, यु झिकुड़ी नि रिझांदी,
बुरांसे लाली, माया का बुखार और तपे जान्दी,
हरी भरी सारियों की रस्याण मा अब बोल्या बणी पराणी,
सुबेर व्यखुनी सड़की का मोड़ बटि यु आँखी नि हटेणी,
अब जरा यूँ अंखियों का सुख्याँ आंशुओ तें रिझावा,
मितें बारामासी हिलांस न बणावा।
.......बलबीर राणा "अडिग"
 सर्वाध © सुरक्षित 

०१ अक्तूबर २०१३



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