इस वर्दी का यही मोल है
यही समग्र समर्पण है यही अमोल है
ललाट पर अर्पण लिखा जो,
उसे टाला नहीं जा सकता
राष्ट्र रक्षार्थ हव्य बने जो
होम उनका रोका नहीं जा सकता
भारत वर्चस्व निमित यह हवन है
आपके शौर्य को नमन है
केशर घाटी की शांति तक समर विराम नहीं लेगा
आखरी अराजक तक पराक्रम आराम नहीं लेगा
अब छुटपुट नहीं पूरा नेस्तनाबूत करना है
इन छद्दमों की छाती पर तिरंगा लहराना है
बाज बन झपट पड़ो जिस घर में आतंकी शेष है
शूरत्व नहीं सुकुमार होता, धरना बिकराल भेष है
बहुत हो गया मानमनोवल पत्थर पर अब मौन नहीं
सटेसाटयम की भाषा चलेगी बेक़सूर का खून नहीं
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