भारत भू कण कण नाप
दिग्विजय इतिहास लिखा
पौरुष अरुण शिखा मुझे
माँ भारती का भाल दिखा
चलता हूँ उस किरण पीछे
जो तिमिर में राह दिखाती
राष्ट्ररक्षार्थ धर्मयज्ञ में
रक्षति रक्षत: मंत्र जपती
मन मोह नहीं खोज पाया
चक्षु यौवन न पा सके
उर उठते किसलय भाव
कंठ ऊपर गमन न कर सके।
कर्म भुमि में लक्ष्य मिला
त्याग समर्पण और दृढ़ता
फिर क्या था चलता रहा
असंभव कहना नहीं सीखा।
जय बद्रीविशाल
Dedicated to
Maj Amit Dimri , SC
@ Balbir Rana 'Adig'
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर रचना... ,सादर नमन
हार्दिक आभार आदरणीया कामिनी जी
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