सोमवार, 17 मई 2021

माँ पागल नहीं है

 

    हेलो सुमी क्या हाल है ? यार कब से फोन कर रहा हूँ फोन क्यों नहीं उठा रही हो ? और कल से वर्टसैप भी नहीं देखा तूने। घर में सब ठीक हैं ना ? अच्छा पापा कैसे है आज ? ध्यान से, तू मयंक और निकिता सावधानी रखना। घर में भी डबल मास्क यूज करो। मम्मी पापा के कमरे की तरफ मत जाना। दूर से ही खाना दवाई दो। जो दवाई मैने लिखकर भेजी थी वे घर पर मंगा ले ? यार पापा का ध्यान रखियो।  80 पर पहुँचने वाले हैं उपर से हार्ट पेशेन्ट अलग से हैं । तू ठीक ही तो कहती है कि पापा चले गए तो हमारी तो बेन्ड बज जायेगी। मेरी पच्चीस हजार की प्राईवेट नोकरी, बच्चों की कॉलेज की हाई-फाई फीस। उपर से आजकल इन शहरों के खर्चे। हेलो सुमी, सुमन तू सुन तो रही है ना ? हाँ ना का जबाब क्यों नहीं दे रही है ? दूसरी तरफ से बिना हेलो के जबाबा के मैं एक सांस में बोल पड़ा था।

            हों बुबा सुणणु छौं, सुणणु। कुछ नि बाबा तेरा बाप म्वोरी बि जायेगा तो मि तो हूँ पिन्शन की हकदार। उस साठ हजार से मिनै थ्वोड़ी यी यकुले अपणी गेर फाड़णी है। मोबाइल माँ ने उठाया था।

माँ की आवाज सुन मैं यकायक सकते में। 

अरे माँ तू !

यार माँ आज तु क्या कुड़बाग बोल रही है ? तेरा बड़बड़ाहट भी ना ?

कुड़बाग क्या ? म्येरी किलै पूछना तूने। हमेस बाप की यी लगी रैती है बाप लेण भैंस जो है तुमारे लिये। अरे त्येरे बाप के म्वरणें के बाद कुछ दिन तक मिन भी तो लेण रैणा है। अर ये करुणा फरुणा ने दोनों को चटका दिया तो फिर घाम तापते रैणा। जबाबा में माँ ने खरी खरी सुना दी थी मुझे ।

अरे माँ ऐसी बात नहीं है तू हमेशा उल्टा ही सोचती है। अच्छा सुमन कहाँ है ?

            ययीं है बाबा। ब्याळी से पड़ी है। तेरे पिता अर ब्वारी को नास्ता खवा के दवैई दे दी है सब ठीक हैं। क्या बोल्ते हैं आक्सीमीटर अर गिच में डालने वाला ठिक दिखा रा बल। वा निकिता अर म्यंक स्वोये हैं अब्बी तक। दोफर हो गयी। ज्वान जमान हो गए पर एक रुप्या का लकार नयी। थ्वोड़ी मदत कर देते म्येरे साथ तो क्या जाता। घोर मु बिमरि से ल्वोथ्यान लगी है। मोटर से मथि टेंकी में पानी भर दिया है। अब्बी झाड़ू अर भानी कूनी साफ करना बचा है। त्येरे पिता के कपड़े बि धोणा है। रात भर नि स्येणी कर रखी बुढ़या ने। पर तू चिन्ता ना कैर बाबा मि सब समाळ लूँगी। म्येरे रैते किसी को कूऽछ नि होगा। सोला बरस की ब्यवायी गई थी तब से क्या क्या नि समाळा आज तक घौर बोण से ये सैर तक।

            माँ के जबाब से मैं और सकते में आ गया। आज माँ का कौन सा बांध फूट पड़ा था। इस बांध के फूटने  की मुझे अपेक्षा नहीं थी। क्योंकि इस गहराई का मुझे आजतक कोई अन्दाजा नहीं था। होने खाने और काम के बारे में माँ का बड़बड़ाहट तो लगा रहता था पर आज तो ?

जबाबा नहीं सूझने पर  मैंने ठीक है माँ थोड़ी देर बाद कॉल  करता हूँ अभी ऑफिस का टाईम हो रहा है कह के कॉल  काट दी। 

कॉल  काटते ही मैं धम से सोफे पर सिर पकड़ के बैठ गया।

माँ के वचन मष्तिश्क में घूमने लग गए। भूंचाल सा आ गया।

            मि तो हूँ पिन्शन की हकदार। साठ हजार से मिनै थ्वोड़ी यी यकुले अपणी गेर फाड़णी है। म्येरी किलै पूछना है तूने। हमेस बाप की यी लगी रैती है बाप लेण भैंस जो है तुमारे लिये। त्येरे बाप के म्वरणे के बाद कुछ दिन तक मिन भी तो लेण रैणा है।  अर ये करुणा फरुणा ने दोनो को चटका दिया तो ? त्येरे पिता अर ब्वारी को नास्ता खवा के दवैई दे दी है। ब्वारी को नास्ता खवा के दवै दे दी। ब्वारी को..........

ओ हो सुमन भी चपेटे में।  

बाप लेण भैंस जो है तुमारे लिए। बाप लेण ........। हआंऽ ?

क्या यार माँ भी पागल है। पता नहीं क्या क्या बड़बड़ाती रहती है।

माँ पागल है। माँ पागल है ?

नहींऽऽ........... माँ पागल नही है।

मैं बाल नोचने लगा। माँ ने कौन सा बांध फोड़ा आज ? कब से भरा था ? क्यों भरा था ? क्या यही सच है ? हाँ यही सच है। अंर्तआत्मा चिल्लाने लगी। हाँ यही सच है।

            सब सच है। माँ ने एक भी शब्द क्या गलत बोला। सब सत्य। मैंने और सुमन नें कब माँ की चिन्ता की। शादी के इतने सालों में एक भी दिन एक शब्द उसको प्यार से नहीं पुकारा। और वो मेरा कृती, मेरा कृती। ब्वारी, ब्वारी करते पीछे घूमती रहती है। हर वक्त हमारे खाने पीने की पूछती है। हर काम में हाथ बांटती है। काम के लिए बड़बड़ाती रहती है और हम माँ को पागल कहते हैं। बुढापे की सनक कहते हैं तिरस्कृत करते हैं। पापा की गाली के बाद भी उनकी हाथों हाथ सेवा करते है। इसलिए बांध भरा था। माँ का बांध गलत नहीं भरा था।

            हम से बड़ा खुदगर्ज कौन है। पापा की पेन्शन नहीं होती तो क्या पापा की भी ऐसे ही उपेक्षा करते ?

हाँ, हाँ।  

नहीं, नहीं।

पापा की पेन्शन ? क्या पापा दुधारु गाय है हमारे लिए ?

हाँ हाँ । नहीं नहीं।

और मेरे मन का भूंचाल सात रिएक्टर से भी उपर। थरथराने लगा उपर से नीचे। अन्तर्द्वन्द्व।

            इसी अन्तर्द्वन्द्व के बीच दो बार मोबाइल का रिंग भी बजा। सुमन का कॉल था। नहीं उठाया। क्या पूछता उसे। यही ना कि तू कैसे चपेटे में आ गई। माँ फलाना डिमकाना बोल रही थी। और वो जवाब देती कि बुढ़िया पागल है सनका गई।

            फिर माँ की आवाज कानों में गूँजने लगी। तू चिन्ता ना कैर बाबा मि सब समाळ लूँगी। म्येरे रैते किसी को कूऽछ नि होगा। म्येरे रैते किसी को ........। और मैं एक लम्बी सांस लेते हुए सोफे पर निडाल हो फैल गया। निश्चिंत। अन्तर्द्वन्द्व खत्म। माँ सब संभाल लेगी। माँ पागल नही है।

 

@ बलबीर सिंह राणा अडिग

 

कुछ गढ़वाली शब्दों का अर्थ :-

 

सुणणु छौं - सुन रहा हूँ, मि - मैं, यकुले - अकेले, गेर - पेट, कुड़बाग – कुवचन/ र्दुवचन, लेण - दुधार, ब्याळी – कल, ब्वारी - बहु, ज्वान जमान - बड़े जवान, लकार - काम का लोभ लालच। ल्वोथ्यान - लथपथ,  भानी कूनी - भांडे वर्तन, स्येणी - सोनी, गिच - मुँह , मथि - ऊपर


 

9 टिप्‍पणियां:

Sunita dhyani ने कहा…

👏👏
माँ सुनाई देती है खामोशियों में.. .. .
माँ सहारा देती तनहाइयों में..

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

ji Sunita bahanji , क्या कहें माँ पर कुछ लिखा नहीं जा सकता। क्योंकि वह सर्वत्र है और सर्वत्र पर लिखना सूर्य को दीपक दिखना जैसा है। आप मेरे ब्लॉग पर आयी आपका तहे दिल धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुंदर औऱ हृदय को झकजोर देने वाली कहानी

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार महोदया / महोदय , धन्यवाद पोर्टल पर आने का

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सच माएं हर परिस्थिति में सब संभाल लेती हैं ।सुंदर सार्थक कहानी ।

रैबार पहाड़ का ने कहा…

बहुत सुंदर भेजी

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

माएं ही संभाल रही हैं

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी कहानी