देखा है दादाजी के चश्में ने
मालिक की आँखों को आहिस्ता विदा लेते।
देखा है दादाजी के चश्में ने
रुदन करते बृक्षों और वनस्पतियों को
जो अंतिम प्राणवायु तक ना दे सके
जिनके लिए जीवन खपाया था मालिक ने।
देखा है दादाजी के चश्में ने
उनकी बेबसी
जो अपना आखिर सत पूरा ना कर सके
गंगा जल की बूंद
जिस गंगा की अविरल धारा के लिए
बिना अन्न जल के ना जाने कितने
दिनों तक देह तपायी थी मालिक ने
और,
असहाय तुलसी पात को
जिसे मालिक सींचता रहा पूजता रहा
आजीवन देहरी की मुंडेर पर
बसुधैव प्राणवायु के लिए ।
देखा है दादाजी के चश्में ने
बेनामी रिश्तों और मनुष्यता को
अपनी जान को
मुँह ढकते छुपते
दूसरों के लिए छुपन छुपाई खेलते ।
और वो सब कुछ अप्रत्याशित देखा
दादाजी के चश्में ने
जिन्हे देखने के लिए
ना ताल* का फोकस था
ना ही समर्थ अपवर्तन गुणांक।
घरों में कैद जिंदगियां
विरान पथ
अदनी सी गोलियों और इंजेक्शनों की
एफिल टावर सी ऊँचाई
निलाम होता सुषेणी ईमान
नारियल पानी की जेट उड़ान
नींबू की बुलेट रफ्तार
रोग प्रतिरोधक के लिए छद्दम युद्ध
और कराहती व्यवस्थायें
जिनके लिए मालिक ने
हजारों पन्नों को व्यवस्थित किया था
धरा पर सुगम जीवन के लिए।
पर ! आगे कुछ नहीं देख पायेगा
दादाजी का यह चश्मा
क्योंकि !
मानव उषाकाल से निशा तक का यह नम्बर
अब किसी अक्षि पर नहीं आने वाला।
* ताल = लेन्स
पर्यावरणविद श्रधेय स्व. सुन्दरलाल बहुगुणा जी को श्राद्धान्जलि स्वरुप अर्पित।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
25 May 2021
11 टिप्पणियां:
बहुत ही शानदार भाई जी
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -5-21) को "वो सुबह कभी तो आएगी..."(4080) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
धन्यवाद आदरणिया
गहन और प्रभावी रचना।
बहुत ही गहन दृष्टि से लिखा है आपने।
वृहद और हृदय स्पर्शी।
दिल को छू जाने वाली अत्यंत मार्मिक रचना!
हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏
बहुत मार्मिक रचना!
अद्भुत सृजन
गहन भाव
कितनी गहन संवेदना और भावना को आपने सुंदर शब्दों में रच दिया,भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है आपने । उत्कृष्ट रचना ।
समय मिलने पर मेरे भी ब्लॉग पर भ्रमण करें, आपका हार्दिक स्वागत है ।
बहुत बहुत आभार सभी साहित्य मनीषियों का आपका दिया आश्रीवाद मेरी कलम को संजीवनी है।
बहुत बहुत आभार सभी साहित्य मनीषियों का आपका दिया आश्रीवाद मेरी कलम को संजीवनी है।
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