धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
सरहद, सागर हर हद पर निगेहबान हैं,
चौकस हैं अरि अक्षि पर संधान हैं।
अडिग हैं आखरी लहू बूंद तक, न रंज ना राड़,
स्वर्गजित सुत, भारतमाता के जवान हैं।
भौत बढिया अडिग जी🙏
वाह!सराहनीय सृजन सर।सादर
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2 टिप्पणियां:
भौत बढिया अडिग जी🙏
वाह!सराहनीय सृजन सर।
सादर
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