रविवार, 23 सितंबर 2012

पिंजरे में कैद जीवन



पिंजरे में कैद जीवन
हाँ यहाँ कैद रहती
उसकी दुनियां उसका संसार
यहां उसके
विचार कैद
भावनाएं कैद
कुन्द होता विवेक
कर्मों के इस कारागार में
मन का पंछी
पंख फडफडाता
वो उडना चाहता
आजाद विचारों की अभिव्यक्ति के साथ
बखान करना चाहता
मन के उद्गारों को
पूरा करना चाहता
दिल के अरमानो को
लेकिन क्या ??
इसके आदर्श और आदेशों की बेडियां
इजाजत देगी ?
आदेश उच्चस्थ के
धंभ के
अहम के
आदर्श संस्था के
मान के
सम्मान के
दे के स्वाभीमान के
लेकिन !!!
कौन समझेगा?
इस मूक पशु की बेदना को
हाँ मूक पशु ही है
जो रक्षित करता
देश की आन को
बान को
शान को
यहां हांकी जाती उसकी इच्छाऐं
थोपी जाती बेवाक बर्चनायें
उसके सच्चे जीवन की आजादी
इस खुले कारागार के नियमों का
हर हाल में पालन करना
यही अज्ञाकारी जीजिविषा से वह
अलौलिक मनुष्य योनि के सच्चे
उपभोग से बंचित रखता

रचना - बबीर राणा भैजी
२३ सितम्बर 2012

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