मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

अब त मिटगे ना !! पच्छ्याँण ।



आज भिज्याँ संकट ऐगे,
युगों की यु भाषा लुप्त हूँण बैठिगे,
घोर गौं मा भी हिंग्लिश शुरू ह्वेगी,
आज का ब्वे-बुबा न्योंयालों दगडी,
गढ़वाली, कुमोनी बुन मा तोहीन समझणा च ,
सात समुन्दर पार की गिटपिट का पिच्छायाडी,
घिसण लग्याँ च, 
क्या हम ?
आज का उत्तराखंडी ज्ञानी समझदार ह्वेगे,
या अहम् अज्ञान मा अफुं तें विसरण लगिगे,
कु जाण !!! 
क्वे ब्वना लिपि नी च,
क्वे ब्वना भाषा नि च,
अरे विश्व की कत्गा भाषा रोमन लिपि मा
लिखी जान्दी,
इत्गा सुन्दर देवनागरी मा क्या हम लिख नि सकदा,
या पढ़ी नि सकदा,  
अरे भैजी लिपि न सही हम उत्तराखंडी त छा,
हमेर भाषा हमेर पच्छ्याँण त छ,
हमेर नयीं पीड़ी अपणी बोली भाषा नि जणली त,
भोल आँण वाल बगत कने अफुं तें,
गढ़वाली, कुमोनी बोलला,
अब त मिटगे ना पच्छ्याँण!!  
कुछ करणी, कुछ करण हार,
यु तुमार अडिग भैजी कु रैबार

.... १५ अक्टूबर २०१३
रचना : बलबीर राणा “अडिग”
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