ये क्या दीखता
हर दिन एक तमाशा दिखता
कोयी पत्थर फेंकता कोयी खाता दिखता
शर्म लाज चौराहे पे रखकर
मानवता पर कालिख पोतता दिखता
ये क्या दीखता
कोयी तिल तिल को तरसता दिखता
कोई ठूंस ठूंस के भरता दिखता
कोयी संगीत सभाओं में मस्त है
कोयी पूस की रात ठंड में मरता दिखता
ये क्या दिखता
हर कोयी बदलाव चलन चलाने की बात करता दिखता
खुद को बदले की कभी नहीं सोचता
एक नयां बोज जनता सर रखके
ठीकरा दूसरे सर फोड़ता दिखता
मेरे भय्या मेरी नजर में खोट है या
खोट टीवी के परदे पे दिखता
क्या करें अब गंगा भी मैली हो गयी
फिर अपना दामन कैसे साफ दिखता
१२ फ़रवरी २०१४
सर्वाधिकार सुरक्षित
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