उन तन्हा राहों में हम सफ़र नहीं मिला जिधर भी गया
जिन्दगी के रस्तों को राहगीर की तरह छोड़ता गया।
दुनियां को क्या देखता वह अपने को संवारती रही
मेरा सपनो का महल शीशे कि तरह टूटता गया।
उलझनों की कड़ियाँ बिखरी पड़ी थी उन राहों में
सुलझाने की कोशिस में खुद ही उलझता गया।
चमन की बहारों से गुजरने को अब जी नहीं चाहता
यौवन में तन्हायी की राह पकड़ी थी चलता गया।
ना जाने कब होगा गंतब्य पूरा इस बीरान रस्ते का
चलते चलते जीवन का चौथाई पखवाड़ा गुजर गया।
जिन्दगी के रस्तों को राहगीर की तरह छोड़ता गया।
दुनियां को क्या देखता वह अपने को संवारती रही
मेरा सपनो का महल शीशे कि तरह टूटता गया।
उलझनों की कड़ियाँ बिखरी पड़ी थी उन राहों में
सुलझाने की कोशिस में खुद ही उलझता गया।
चमन की बहारों से गुजरने को अब जी नहीं चाहता
यौवन में तन्हायी की राह पकड़ी थी चलता गया।
ना जाने कब होगा गंतब्य पूरा इस बीरान रस्ते का
चलते चलते जीवन का चौथाई पखवाड़ा गुजर गया।
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