शरीर के पट
व्योम पर पग टिकाने को आतुर मन
पर वहां कोई ठोर ही नहीं
पूरी जगह तारों ने हड़प ली
जो अंतस के अंध में टिमटिमाते हैं
पर उनमें रोशनी नहीं
अडिग है मन का भ्राता जिगर
जो मनोरम धरती को छोड़ता ही नहीं।
@ बलबीर राणा "अडिग"
धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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