शुक्रवार, 27 जून 2014

कुर्सी प्रधान की


कुर्सी प्रधान की तो मिल गयी
कार्यों को कितना निभाएगा
कहीं भूक से निर्लज इसे तू भी बेच कर तो नहीं खायेगा
वैसे कुर्सी भूक नहीं मगर दोनों में कोई बैर नहीं
कहीं भूक बेताब हुयी तो कुर्सी की खैर नहीं।

----- राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की आजादी से सभार समतुल्य सामयिक परिवर्तन
@ बलबीर राणा "अडिग"

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