गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

सन्देश देता दशहरा


हर वर्ष सन्देश देता दशहरा
छंटेगा तम का अंधड़ घनेरा
सत्य की  विजय अधम पर होय
सुपथ पर उगे नयां पावन सबेरा।

धैर्य न व्याकुल हो धीर दे सहारा
मर्यादा पर विश्वास बड़े  तेरा
मीठे सरोवर में जीवन नहाये
न रहे कोई  जलज धरा पे खारा
हर वर्ष .......

पुतले संग राख ख़ाक हो अहम सारा
अंतस में रावण फिर न बना रहे कारा
बाहर-बाहर गीत राम के गुंजित न हो
ज्यु भीतर भी बने पुरुषोत्तम का बसेरा
हर वर्ष...........

सर्व सम्भाव पल्लवित हो चितेरा
बगिया में कुसुम् लताएँ बनाये घेरा
उगने न पाये काँटे जात-पात के
भय हीन निर्भय हो जीवन  हमेरा।
हर वर्ष.........

दंभ अभिमान पर वार हो सदा
सत वाणों से तरकश हो भरा
छेदन हो क्रोध कपट कटुता का
अडिग कल्पना का हो यह संसारा
हर वर्ष सन्देश देता दशहरा ।

ज्यु = जिगर, दिल

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'
© सर्वाधिकार सुरक्षित

3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

पुतले संग राख ख़ाक हो अहम सारा
अंतस में रावण फिर न बना रहे कारा
बाहर-बाहर गीत राम के गुंजित न हो
ज्यु भीतर भी बने पुरुषोत्तम का बसेरा
... बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति
ज्यु शब्द का प्रयोग देख जिकुड़ी म भलु लागु..

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद कविता रावत जी
यू माटी कु मर्म च कि दिल से जुडयां कुछ शब्दों का बिगैर सृजन अधुरो जन लग्दु

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद कविता रावत जी
यू माटी कु मर्म च कि दिल से जुडयां कुछ शब्दों का बिगैर सृजन अधुरो जन लग्दु