शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

कालग्नि


निर्द्वेष हृदय
द्रोहाग्नि का मूल
नहीं हो सकता
ना ही
निर्द्वेष शरीर बृत्ति
लड़ने की
ये कालग्नि लपटें तो
विषैले व्यक्तियों की
सांस से निकलती हैं
जिसकी जद से
मनुष्य युगान्तर से
युद्धरत है।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

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