धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
निर्द्वेष हृदय
द्रोहाग्नि का मूल
नहीं हो सकता
ना ही
निर्द्वेष शरीर बृत्ति
लड़ने की
ये कालग्नि लपटें तो
विषैले व्यक्तियों की
सांस से निकलती हैं
जिसकी जद से
मनुष्य युगान्तर से
युद्धरत है।
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