सोमवार, 19 दिसंबर 2016

*****मौसम बदलने लगा*****


अचानक ये कैसा मौसम बदलने लगा
गर्मी देख शिशिर भी हाथ मलने लगा।
सौ रहे थे जो गड़िड़्यों के ऊपर रजाई औढ़
बिन चदर पसीने से कागज पिघलने लगा।
कल तक सफ़र सुहाना था, गाडी सौ से ऊपर थी
ये मुआं कहाँ से आया, सौ का भी लाला पड़ने लगा।
चीरी मच गयी ये अचानक कैसी लपटों ने घेर दिया
इस गर्मी से वातानुकूलित तहखना उबलने लगा।
इतनी जल्दी जमीन पर आजाऊँगा सोचा नहीं था
अब तो नोकर भी लाईन में साथ खड़ा होने लगा।
तेरा क्या खाया था तोदी के बच्चे, सबका हिस्सा था
काला समझ बच जायेगा, अब सबका अंत लगने लगा।
अब घोषणा हो चुकी, जनाजा तो निकलना तय ठैरा
बिना भोज के जनाजियों का आना मुश्किल लगने लगा।

चीरी मचना = बहुत दर्द होना

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