धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
माँ, माटी और मिशन यही मेरा धर्म शिकवा नहीं मेरा घर बिलख रहा उसका घर खिलखिला रहा माटी के लिए बलिदान फितरत में थी बलिदान हो गए जय हिन्द गाते गाते। बलबीर राणा 'अडिग'
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