बुधवार, 16 अगस्त 2017

कृष्ण वंदना



देवकी वसुदेव नन्दन कृष्ण चंद वंदनम
धरा सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।

घोर घटा श्रावणी स्याह रात्रि आगमनम
जगदीशश्वरम विष्णु बिपुलं श्याम सुंदरम
मोर मुकुट मुरलीधर चंचल मृदु चपलम
सहस्र वन्दन हे सारथी यशोदा-नन्द नन्दनम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।

पावन बाल चरित नटखट गोकुल धामम
गोपीयों संग रांस रचित प्रीत वृन्दाबनम
कृत्य अचंभितम महा मायावी पूतना बधम
इन्द्र दम्भम चूर-चूरम हाथ धरि गोवर्धनम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम

पीताम्बर कण्ठ वैजयन्ती स्वर्ण कुंडल शोभितम
अधर मधुर मुरली हस्त विराजे चक्र सुदर्शनम
काली नाग नथनम कंस काल कवलितकम
धरा शुचि संकल्पम प्रभु दहन पाप नाशकम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिंदम।

स्वर्णिम उषा सुखद निशा बृज भूमि आनंदम
तिमिर लोप, जहां विराजे कण-कण राधेश्वरम
हर मन-हृदय वसियो यशोदा श्यामा सुकोमलम
राधा रुकमणी दिल हरणम योगेश्वर बृजभूषणम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दनम गोबिन्दम।

अद्वितीय बलम पांडव दलम रण महाभारतम
पार्थ सारथी कुशल नेतृत्वम युद्धम कुरुक्षेत्रम
गीता अमृतम अमूर्त पवित्रम मनु आजीवनम
सर्वत्र व्याप्त प्राणी-प्राण, भूत-भविष्यम केशवम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दम गोबिन्दम।

सद मति दे हे महांबाहो उत्थान दे सर्वेश्वरम
ज्ञान क्षशु प्राकाश दे सद्भाव वत्स वत्सलम
हिन्द सुत कर्म प्रधान हो सुर-शोर्य आत्मबलम
रक्ष दक्ष परिपूर्ण सुपुष्ठम जग श्रेष्ठ हो भारतम
धरा अति सुशोभितम अभिनन्दम गोबिन्दम।

रचियता:- बलबीर राणा 'अडिग'



कोई टिप्पणी नहीं: