धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
अडिग शब्दों का पहरा: आर्तनाद: पर्णकुटी के छिद्रों से पहली रश्मि रोशनी देखता हूँ गौशाला में कुम्हलाती बछियां रंभाती गवैं देखता हूँ नहीं पता किस धारा किस सेक्शन से बब...
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