बुधवार, 28 अगस्त 2019

आर्तनाद


पर्णकुटी के छिद्रों से पहली रश्मि रोशनी देखता हूँ
गौशाला में कुम्हलाती बछियां रंभाती गवैं देखता हूँ
नहीं पता किस धारा किस सेक्शन से बबाल मचा है
मैं दिन की बाटी सांझ चूल्हे का  जुगाड़ देखता हूँ

अरुणोदय से गोधूलि तक मिट्टी में खटकता हूँ
दो कौर के उदर को, उदरों के लिए जुतता हूँ
इतना यकीन है मेरे स्वेद से मोती ही निकलेगा
कर्म वेदी पर हर क्षण को स्वाति नक्षत्र देखता हूँ

घाम न देखा नग्न देह ने, न पहचानी शीत पवन
काष्ट बने निष्ठुर पाँवों से होंगे कितने कंकड़ मर्दन
बटन दबाया जिस सपने पर उसे ओझल पाता हूँ
समृद्ध निलय के कंगूरों को दिवास्वप्न सा देखता हूँ

शैशव से नीला अम्बर छत्रछाया छत्रपति देखा
अर्क ताप शीतल पावस से धरा को सजते देखा
अचल अचला पर कहाँ वह रेखा किसीने देखा
जिस अदृश्य रेखा पर इंसानो को कटते देखा।

रंचना : बलबीर राणा 'अड़िग'






7 टिप्‍पणियां:

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

इस कविता पर सभी साहित्यविदों का आश्रीवाद चाहता हूँ

Meena Bhardwaj ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 3 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

अनीता सैनी ने कहा…

हृदय स्पर्शी सृजन
सादर

मन की वीणा ने कहा…

मर्मस्पर्सी चित्रण कृषक का।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार बहन Meena Bhardwaj जी आपने अपने पोर्टल पर मुझे रखा, ब्लॉग की नित्य समय सारणी में उपलभ्द्ध नहीं हो हेतु क्षमा चाहता हूँ, क्योंकि सैनिक को जब छुट्टी मिले तब दीवाली।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार बहन Meena Bhardwaj जी आपने अपने पोर्टल पर मुझे रखा, ब्लॉग की नित्य समय सारणी में उपलभ्द्ध नहीं हो हेतु क्षमा चाहता हूँ, क्योंकि सैनिक को जब छुट्टी मिले तब दीवाली।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार अनीता सैनी जी , मन की वीणा जी, स्नेह वंदन