गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

उठो पापा बक्से में क्यों सोये हो



    
   

     घर में बहुत भीड़ लगी थी, एक तरफ माँ बिलख रही एक तरफ दादी, दादा पुत्र शोक में एक कमरे में मौन सिर झुकाए बीड़ी पर बीड़ी सुलगाये जा रहा था, बड़ी बहन रजनी जो मात्र आठ साल की थी सबक़े दुख की साझीदार हो रही थी सायद उसको कुछ आभास था और समझ भी, कभी माँ के गले लग फफकती हुयी रोती कभी दादी के आंसू पौंछती और कभी दादा की जलती बीड़ी हाथ से दूर फेंक रही थी। चार साल का वैभव समझ नहीं पा रहा था ये क्या हो रहा है, सब लोग क्यों रो रहे हैं। उसके दोस्त भी अपनी माँ या दादी साथ आये थे आज बाल चित की चपलाहट भी मौन थी, कहीं कोई मसखरी न कोई  शरारत, हाँ कभी-कभी आपस में एक दूसरे की सहमते चुटकी काट देते और बड़े बुजुर्ग उनको इशारों में चुप रहने को कहते। घर में बहुत भीड़ थी जो भी रहा था मासूम वैभव के सर पर हाथ फिराता, मां, दादी और दादा के पास जाता और सांत्वना देता, कारुण्य वेदना में पूरा घर कराह रहा था।  विधि का विधान है, भगवान अनर्थ हो गया, हँसते, फलते फूलते घर में बज्रपात हो गया, दो दिन पहले ही फोन पर अगले हप्ते बेटे के जन्मदिन पर छुट्टी आने को कह रहा था लेकिन आज एक बुरी खबर से सबके जीवन में भूंचाल गया था, जिस चौक में एक हप्ते बाद हर्ष उल्लास होना था वहां आज रुदन, कराह और शोक का कुहासा, जीवन का अग्रिम पथ धूमिल धुंदला और अंधकारमय । 
वीर सपूत बीरसिंह भारत माता की सेवा में जीवन का सर्वोच्च बलिदान दे गया था, एरां भगवान् ऐसा अनर्थ क्यों किया अभी तो नौकरी भी ज्यादा नहीं हुयी थी, अभी अभी तो शहर में मकान बनाया था बल्कि कुछ काम अभी भी बाकी था, आम इन्शान की तरह उसके वादे थे, गाँव के मकान की मरम्मत करना, बेटे और बेटी को अच्छी स्कूल में पढ़ाना ऊँची शिक्षा देना, बूढ़े माँ बाप को चार धाम की यात्रा कराना, फ़ौज में बड़े पद तक पहुंचना लेकिन होता वही जी राम रचि रखा।  
घर के बाहर भीड में गाँव वाले,  मीडिया, राजनेता नेता विधायक, मंत्री, नजदीकी रिश्तेदार सब आये थे। इतने में भारत माता की जय, बीर सिंह अमर रहे, पाकिस्तान मुर्दाबाद, बीर सिंह अमर रहे के नारे लगने लग गए। बीरसिंह का पार्थिक शरीर तिरंगे में लिपटे ताबूत में सेना के जवान ला रहे थे। सलामी रस्म के लिए फौजी बेंड, जवान और ऑफिसर आये थे, किसी रिश्तेदार ने एक कंधे में ताबूत दूसरे कंधे में वैभव को उठा रखा थावह अबोध भी जनता के जोश के साथ हाथ उठा- उठा कर  बीरसिंह अमर रहे के नारे लगा रहा था। अंतिम दर्शन के लिए ताबूत खुला परिजनों ने वेहाली में बिलखते हुए शहीद का अंतिम दर्शन किया, मासूम वैभव को भी अंतिम दर्शन के लिए ले गए, बक्से में चिर निद्रा में पापा को देख वह मासूमियत से कह रहा था पापा उठो...उठो इस बक्से में क्यों सोये हो? सुनो सब आपको अमर रहे,  कह रहे हैं, उठो .... उठो.. रोवो चिल्लाओ मृत देह कहाँ आवाज देती है। उस अबोध को क्या पता था पापा मातृ भूमि के लिए हमेशा की अनंत यात्रा पर चले गए हैं। अब कभी नहीं उठेंगे। कारुण्य और करुणा के इस विह्वल दृश्य से पत्थर भी आँशू नहीं रोक पा रहा था।

कहानी  : बलबीर सिंह राणा 'अडिग'

6 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०५-२०२०) को 'विडंबना' (चर्चा अंक-३७०३) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

मार्मिक घटना, बच्चो को कैसे समझाएँ?

Onkar ने कहा…

मार्मिक

Kamini Sinha ने कहा…

उफ़ ,बेहद मार्मिक घटना ,सादर नमन आपको

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत ही हृदयस्पर्शी , मार्मिक सृजन।

बेनामी ने कहा…

Ji namaste ye balbir singh adig hai ..inke mn me jwaar bhaare ki tarah sab kuch ubaal leta hai ..or ek soldier inke khoon me samil hai sab ko dikhana na ki chupana ..