शुक्रवार, 13 मार्च 2020

कली तक का जीवन सफर


बड़ा पेड़ बनने की
न कभी इच्छा हुई
न ही कल्पना की
क्योंकि मुझे पता है
मेरा जीवन सफर
कली तक का ही है
जितनी जल्दी कली बनती हूँ
उतनी जल्दी तोड़ी जाती हूँ
किसलय पत्तीयों के साथ
मशीनों में मरोड़ी जाती हूँ
बना दी जाती हूँ
एक काला दाना
फिर उबलते पानी के साथ
देती हूँ कुछ रंग कुछ स्वाद
प्यालियाँ भरकर।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

12 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…


बहुत सुंदर ,आपने तो चाय की पत्तियों के मर्म को भी जुबा दे दी ,सादर नमन

अनीता सैनी ने कहा…


जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की शनिवार(१४-०३-२०२०) को "परिवर्तन "(चर्चा अंक -३६४०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

कामिनी शर्मा जी हार्दिक वन्दन अभिनन्दन, बस इन लहलहाते चाय बागानों की अंतर्वेदना से आजकल रु व रु हो रहा हूँ तो इस कड़ी में पहले चाय की पत्ती से सुरुवात करनी चाही, असली मजदूर वेदना बाकी है।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद सादर आभार जी मुझे स्थान देने का

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद ओंकार जी

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आदरणीय गुरुदेव आपका स्नेह बना रहे।

'एकलव्य' ने कहा…

आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )

'बुधवार' १८ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/03/blog-post_18.html

https://loktantrasanvad.blogspot.in/




टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

Rohitas Ghorela ने कहा…

चुस्कियां ऐसे ही नहीं है।
वो कच्ची कलियों की बिनाक पे।
सुंदर।
नई रचना- सर्वोपरि?

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
लाजवाब सृजन....
जीवन सफर सिर्फ कलियों तक !!!

Anchal Pandey ने कहा…

वाह!
बेहद उम्दा।