नहीं
आती थी उसे
गिनती
पहाड़ा
पर
!
उसने
जिन्दगी के हिसाब किताब में
कभी
गलती नहीं की ।
बैरीपन
घटाना,
दुनियां
की रीति नीति का भागफल
और
रिस्तों का गुणांक
वह
भली भांति जानती थी।
संसार
का रेखागणित ज्यामिति,
उसके
त्रिकोणमिती में कोण
हमेशा
समकोण रहते थे।
कंठस्त
था उसको,
गिरस्थी
वाणिज्य की तो वो
मजी
हुई वाणिज्यकार थी।
अ,
ब, स उसे काला अक्षर
भैंस
बराबर क्यों ना रहा हो
पर
! उसने
ना
कभी गलत गढ़ा,
ना
गलत पढ़ा, ना ही पढ़ाया ।
अशुद्धि
नहीं होती थी
ना
ही व्याकरण में त्रुटि,
क्योंकि
भाषा उसके
पय
से निकलती थी ।
उसके
नेह
के गीत कविता
होने
खाने के छन्द
व्यवहार
के मुक्तक
जीवन
पथ पर
दिशा
र्निदेशित करती हैं।
सहारा
बनती है
उसकी
सुनाई कथा कहानियां।
ठोकरों
से बचाती हैं
वे
एकांकी नाटक
जिसमें
वो स्वयं किरदारा रही हो
या
मंचन उसके करीब मंचित हुआ हो।
मनसा
वाचा कर्मणा से
अडिग
रहने का बल देती हैं
पुरखों
की जीवनियां, यात्रा वृतान्त
जिसे
वह काला टीका लगाते वक्त
मुझे
बताया करती थी।
और
मुठ्ठियों
से कूटते
अच्छी
तरह समझाई थी उसने मुझे
हमारी
रीति-रिवाज, देव-धर्म,
संस्कृति-संस्कार,
भलाई बुराई ।
समाजशास्त्र,
धर्मशास्त्र
सभी
जीवन शास्त्रों की जानकार थी
मेरी
पहली गुरु, शिक्षिका
मेरी
माँ लीला देवी राणा।
*
कंडाली - बिच्छू घास
चतौड़ - सेकना / पीटना
9 टिप्पणियां:
माँ से बढ़कर भला और कौन गुरु हो सकता है संसार में
आजकल हमारे बगीचे में भी कंडाली की बहार है, ग्रीन टी बनाते हैं हम उससे
बहुत सटीक
लाजबाब भैजि🙏🙏
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 28 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सच है कि माँ ही पहली गुरु होती है ।
खूबसूरती से आपने अपने भाव लिखे । भले ही स्त्रियाँ पहले के ज़माने में कम पढ़ी लिखी होती थीं लेकिन घर - गृहस्थी के जोड़ घटाव में सिद्ध हस्त थीं ।
अशुद्धि * और मुट्ठियाँ * शब्द शायद टाइपिंग की वजह से लिखा गया है ।
खूबसूरत रचनाओं में कोई गलती नहीं होनी चाहिए ,ऐसा मुझे लगता है । आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे ।
निःसंदेह, माँ ही गर्भ से प्रथम गुरु होती है, माँ की अनंत ममता दिव्यता के उस पार होती है - - सुन्दर सृजन।
पहला गुरु, पहला मार्गदर्शक, पहला दोस्त, पहला हितैषी.....माँ से बढ़कर भला और कौन हो सकता है
सचमुच मां जैसी कोई नहीं, बहुत भावपूर्ण पंक्तियां
माँ तो गुरुओं की भी गुरु है ...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ... माँ सा कौन ...
हार्दिक आभार संगीता स्वरूपा जी। दिली अभिनन्दन मार्गदर्शन का
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