कभी नहीं छूटता चलने को,
संघर्ष जीवन से निकलने को।
सुरज इस लिए रोज बुझता है,
फिर एक नईं सुबह जलने को।
वक्त चलायमान रुकता कहाँ,
वक्त होता ही है गुजरने को।
लगे रह हैरान परेशान न हो,
तू आया ही है कुछ करने को।
संजो समय को सामर्थ्य से,
सामर्थ्य होता ही संवरने को।
कर्म का नाम ही जीवन अडिग,
कर्म बिन जीवन न निखरने को।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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