आबो हवा जिधऱ की हुई उधर के हो गए,
सीधी डगर वाले भी किधर से किधर के हो गए।
बोल-बचन कौल-करार पर कब रहे वे,
जुबान से पलटे और खबर के हो गए।
चिंता न कर हम हैं पराळ जो दे रहे थे,
बारी आयी कि अगर-मगर के हो गए।
द्वीघर्यों का क्या वास्ता इज्जत आबरु से,
आज एक घर के कल दूसरे घर के हो गए।
चीफळी गिच्ची वाले सबके हुए अडिग,
सच्च वाले किसी की नजर के हो गए।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
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