सुण ले रे मनखी टक लगे
कन्दुडा लगावा,
धै मी बेजुबान पहाड़े की सुणी
ल्यावा,
कभी रूडी न सुखायी, कभी
बरखा न बगायी
मेरी देली मा अब किले त्रासदी
आयी ।
क्वी बिजली का बाना मैमा ताल
बडेदिन,
क्वी सुरंगों ल मेरु पेट
फाडदन,
अब इत्गा पीड़ा सौण, म्यार
बस मा नि रायी
मेरी देली मा अब किले त्रासदी
आयी ।
कैन, डाला-बोट काटी कैन, जंगल
जलायी,
रेता बजरी का बाना मेरा
नशों मा बेलचा चलायी
मेरु गात नंगु कैरी, तुमतें
शर्म नि आयी
कागजों मा डाली रोपी, चकडेम
बणे,
प्रयावरण की रक्षा का बाना,
तुमुल खूब रुपयां कमाई
मेरी देली मा अब किले त्रासदी
आयी ।
आज विकाश की गंगा मा गरीब बगणा
छन,
जेन मी पहाडू को शोषण करी,
वों बंगलों मा चैन की नींद स्योणा
छन,
यूँ भू माफिया, जंगल
माफियों का जाल मा
तुमुल मी अडिग हिमालय किले
हिलाई ?
मेरी देली मा अब किले त्रासदी
आयी ।
सुण ले रे मनखी टक लगे
कन्दुडा लगावा,
धै मी बेजुबान पहाड़े की सुणी
ल्यावा,
अपणा विकाश का दगडी, मेरु
गात भी ढके जावा
तभी मैमा इन्द्र का बाण, सोणे
की शक्ति रैली
कैकी कुड़ी-पुन्गडी, पाणी मा नि बगेली
तब ना मेरी, और ना तुमारी
देली मा त्रासदी ह्वेली...
त्रासदी ह्वेली..........
१७ जून २०१३ (उत्तराखंड में
मानसून त्रासदी पर)
...........बलबीर राणा “भैजी”
सर्वाध © सुरक्षित
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