ब्वेल
फोन पर बोली
बेटा
नातिक खुद लगीं
अज्क्याल
गर्मी छुटी मा
तों
द्वि दिन घोर ल्येदे
जरा
मी भी हरीश देखुला
अपणा
पोथी-पंछियोंक घ्यू दूध खळोला
ऐरां!
तख बजारुं खाण-प्योंण च
अजी!!
नि
जाणा बल हमें उन पहाड़ों में
म्यार
लड़के काळा ह्वे जायेंगे वहां
उनको
समर कैंप में हिल स्टेशन जाणा बल
द्वि हजार फीस दे रखी है
अर!!
मी
चुप.............
ब्वेतें
बाणु बणे समझे भुझे,
ब्वे'त माणी,
अपणो
खातिर माया मारी,
पर!!
मेरु
ज्यू अपणा भोऽळक सवाल छोड़ी ??
इनी
कैरी हम अपणी ये पीडी तें
कखी?
इत्गा
दूर त् नि लि जाणा च ??
जखक
बाटा, माया-ममता,
संस्कृति-संस्कार
हर्चीक
वापस
ओंण
मुश्किल
क्या नामुमकिन ह्वे जावो,
चलो?
मुछ्यालूऽ
जगी पिछने आन्दु।
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बलबीर
राणा “अडिग”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें