गुरुवार, 29 मई 2014

फूल का पैगाम




बालों पे सजाओ गजरा बन जाऊं
धागे में गुंथो हार कहलाऊं
बगिया में रह चमन चहकाऊं
घर आँगन खुशुबू बिखराऊं
मन महकाना फर्ज मेरा
दिल बहकाना कर्म मेरा
पैगाम मेरा सुनते जाओ
अपने बजूद में मुझे रमाओ
खुशियों से जीवन गुलजार कर दूं
एक बार तो आजमाओ
सच्चायी प्रकृति जान फिर भी
कांटे एक दूजे को बोये जा रहे हो
कागज़ के मेरे बहुरुपये से
मन को समझाये जा रहे हो
अरे कभी उस राह पर मुझे बिखरा के तो देखो
जिस राह से तेरा बेरी मन गुजरता
फिर देखना
कुंठाओं से भरे दिल में तेरे ऐसा प्रेम जागेगा
अपने संग दूजे को भी दीप्त करेगा।
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बलबीर राणा "अडिग" 

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