शनिवार, 17 मई 2014

कूड़ी जग्वाल


खोळ बटिन भैर क्या चल्गे  
लठियाळा अपणेस नि रेगे
पैली कभी-कभार,
तू धार-काँठों बटिन
तीजे जन जून दिखे भी जांदू छै,
अब निजाण,
कख हर्चिन
तु क्या हर्चे सबी हर्चेणा च, 
दुन्या आज उन्दारे लंगी 
उकाल क्वी नि आणु,
संसारे सदानी रीती रे
उग्दा सूरज तेन सब प्रणाम करदा
डूब्दा थें क्वी नि करदू,
यूँ पाड आज डूबणा च,
उड़्दा सबुं देखी
बैठी कैन नि देखी
तुम उडिग्यां  
मी कूड़ी  जग्वालम बैठीं
बल!  
अलंगी जालू-पलंगी जालू
ऐलू जड़े पऽर।    

जून २००३ डैरी पन्ना बटिन 
रचना – बलबीर राणा “अडिग”
© सर्वाधिकार सुरक्षित
  
 

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