मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

चींथडों में अपनापन

गरबी तू ही अच्छी थी
चींथडों में मेरे अपने
मेरे आगोस में हुआ करते थे
महलों की मखमली चादर
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा
जो तु मेरे अपनों को
मुझसे छीन ले गयी।

रचना:-बलबीर राणा "अडिग"

कोई टिप्पणी नहीं: