रविवार, 3 नवंबर 2019

असली मोगली



कार्टून का मोगली नहीं
असली जीवन का मोगली है
गाँवों का बचपन
चेहरों पर हंसी ही नहीं
अंदर से भी ठहाका है
निर्भीक अभयारण्य
प्रकृति वैभव में
कूदते हैं फांदते है
छलांगे लगाते है
क्योंकि ये अभी
विकास की जद में
नहीं आये
जद में आते ही
बन जाएंगे ये भी
बस्तों के नीचे दबे
रिमोट से उछलने
वाले बेबी।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

3 टिप्‍पणियां:

अश्विनी ढुंढाड़ा ने कहा…

बचपन गांव का हो या शहर का निश्चल, निर्मल,निस्वार्थ होता है.. . ना भविष्य की चिंता ना वर्तमान का खौफ बस अपनी मौज में मस्त


लेकिन अब शायद ये बचपना तकनीक जाल में खो रहा है

सुन्दर रचना के लिए शुभकामनाएं

Prakash Sah ने कहा…

बहुत बढ़िया...

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

sahriday aabhar yashoda ji Ashwni ji, prakash sah ji