सोमवार, 23 मई 2022

भूख




बहुत हिम्मत और

ताकतवर है साब भूख

हजारों मील दौड़ती है 

संसार के ओर छोर

महाद्वीपों से महाद्वीप

प्रायद्वीपों से टापुओं में 

दाने के लिए। 


भूख बहुत

भावुक नाजुक 

कंयारी क्वांसीली ठैरी,

पिघल जाती है 

द्वार चौराहों पर 

तीर्थ मंदिरों में 

गली, चौक, चौराहों और दरवारों में, 

स्वान बन नतमस्तक हो जाती है

अपने लायक दाने को।


भूख बड़ी 

खूंखार आदमखोर है 

चूस लेती है खून 

ठेले के नीबू से

मल्टीप्लेस मौलों तक, 

चपरासी की फाइल से 

बड़े साब के हस्ताक्षर तक , 

गली का गड्डा भरने से 

एक्सप्रेसवे बनने तक।


भूख बड़ी झूटी  

लंपट है  

क्षुधा मिटते ही 

वादाखिलापी पर आ जाती है

गिरगिट की तरह रंग 

बदलना इसकी फितरत में है

विशेषकर कुर्सी भूख का। 


झोपड़ी, मंजिलों से

अट्टालिकाओं में, 

टाट पट्टी, 

प्लास्टिक कुर्सी से

लग्जरी रोवोल्विंग चियरों में

विलग रूपों वाली है भूख।


विभन्न भाव भंगिमाओं में

नजर आती है भूख

कहीं रोती बिबलाती

कहीं मुल्ल-मुळकती

कहीं खिखताट तो

कहीं विभत्स ठहाका लगाती 

दुखाती, बनाती, रचाती, नचाती 

रहती है जीवन को। 


कुछ भूख घर चलाने को

कुछ केवल घर भरने को 

कोई भूख, भूखों के लिए

कोई स्व सुखों के लिए 

खटकती रहती है। 


एक भूख प्रेम को

एक घृणा को

एक आत्ममुग्त्ता को

एक राष्ट्र स्वाभिमान को 

व्याकुल करती है । 


भूख 

चातक के जैसे

स्वाति नक्षत्र में 

बरसने वाली बूंद  की प्रतीक्षा में 

तठस्थ नहीं रह सकती

बल्कि

पिपीलिका की तरह 

हर समय गतिमान 

चलायमान रहती है

जीवन चलाने को ।


@ बलबीर राणा ‘अडिग’

13 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

भूख को विभिन्‍न रूपों में बडे ही सटीक तरीके से प्रस्‍तुत किया है आपने। आज की सच्‍चाई की बानगी है यह कविता। अपनी गढ्वाली शब्‍दों से कविता को चार चांद लगा दिया आपने

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार बहनजी आपकी प्रतिक्रिया कलम को बल देती है, स्नेह बना रहे।

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-5-22) को "ज्ञान व्यापी शिव" (चर्चा अंक 4440) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भूख के अनेक रूप दिखा दिए । बेहतरीन रचना

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

हार्दिक आभार कामिनी सिन्हा जी

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद संगीता स्वरूपा जी

Onkar Singh 'Vivek' ने कहा…

वाह वाह!निःसंदेह मार्मिक👌👌

Sudha Devrani ने कहा…

पेट की भूख से लेकर कुर्सी की भूख तक और भी सभी प्रकार की भूखों को उनके रूप गुणों के साथ और उन भूखों को मिटाने की हर कला को अद्भुत शब्द एवं बिम्ब में लाजवाब तरीक़े से समेटा है आपने । साथ ही अपने गढ़वाली शब्दो से और भी दमदार बनाया है सृजन को...
बहुत बहुत लाजवाब सृजन हेतु साधुवाद🙏🙏🙏

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आदरणीया देवरानी जी हार्दिक धन्यवाद और आभार

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

भूख तेरे कितने रूप, सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद दीपक जी आभार, मेरे ब्लॉग में आने का, हार्दिक स्वागत करता हूं

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद विवेक जी

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....