यूँ
खामखाँ सूदों किसी को टोका न जाए,
करने
दो,
जो कर रहा है रोका न जाए।
हवा
कब रुख बदल दे कहना है मुश्किल
औरों
की पुरवाई पर फैसला लिया न जाए।
छुवीं
ऐसी न लगे कि चिंगारी बडांग बने,
फिर
पूरे गाँव को जद से बचाया न जाए।
वजह
के लिए उलझना हो तो उलझो,
बेवजह
फंसने के लिए उलझा न जाए।
अंदर
ही पकाओ खिचड़ी कच्ची-पकी जो भी है,
घर
का रस्वाड़ा चौराहे पर चढ़ाया न जाए।
सीख
रहे हो तो किनारे पर ही उतरो
सीखने
के लिए गहराई में कूदा न जाए।
सुसल
से सागर भी पार हो जाता है अडिग
कुसल
का हल किसी को सुझाया न जाए।
गढ़वाली शब्दों का अर्थ
छुवीं – बातचीत
बडांग - बनाग्नि
रस्वाड़ा- रसोई
सुसल - अच्छी तरकीब ढंग
कुसल - खराब तरकीब
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
1 टिप्पणी:
धन्यवाद आदरणीया
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