मन अकुलाहट हिय को घेरे
विदा लेने को नहीं बन रहा
देख नीड़ में मासूम चेहरे
मलिन है प्रियसी मुख कांति
अंदर अनिश्चिन्तता अशांति
तिलक थाल पर कंपकंपी
वीरांगना को ये कैसी भ्रान्ति
किस भय के बादल घनेरे
हाय रे ये प्रीत के घेरे
बन्धन सब मुट्ठी में बांधे
असाध्य सभी डटके साधे
हट देख राह रोड़े भी हारे थे
आज डट हुए जा रहे आधे
क्यों हो रहा बस, बेबस मेरे
हाय रे ये प्रीत के फेरे
एक तरफ राष्ट्र फर्ज
दूजे तरफ गृहस्थ मर्ज
कंठ ना आए देश गान
बनने से न बन रही तर्ज
संशय क्यों हैं ये भतेरे
हाय रे ये प्रीत के फेरे
ओ मोहमाया महारथी
मत बना मुझे सारथी
निर्वाध जाने दे रण में
क्यों हरे जा रहा मती
मत डाल ये मोहनी डेरे
ओ ऐ! प्रीत-स्रीत के फेरे।
चल अडिग मोह छोड़
सारे माया बंधन तौड़
निकल राष्ट्र क्षितिज पर
अक्षि को संधान से जोड़।
इसी में भारत के दिन सुनहरे
मत जप प्रीत-स्रीत के फेरे।
रचनाकाल : जून 1999
विजयी ऑपरेशन (कारगिल युद्ध) गमन पर
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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