रविवार, 28 जुलाई 2024

दीsनौठ



      बात पतै कि यु छयी कि मि बिगैर पता को छौ भटकणू तै भड़मणकार गर्मी मा। वा बि ज्यौठौ मैना अर दिल्ली गळियाँ। यौक चिठ्ठी हाथ धौरी भटकणू। उन त सैर अब मि उणि जादा नै नि छौ पर नै जाग त नै हूँद। फेर तौं सौरों पन्द्रा फिटै गळियाँ अर हजार लाखौं भिड़कतौळा बीच क्व ना भटकौ। दुसर मा तख अपच्छयाण अजाण मनखी तैं गौं का जन अपण्यास मिलणें आसा कन बेमानी छन। कति औणा कति जाणा, कै उणि कै सि क्वै मतलब नि। मतलब छन त अपणा बाटा अपणा काम सि। एक किरमुलैं जनि लुंग्याळ लगीं रैन्दी।

      गौं मा क्वी अपच्छयाण दिखै त कति लोग पूछी द्यना, भै आपै दौड़ ? कख बटे औण होयूँ होलू ? कै गौं जाण होलू आपन ? बाटू त नि भटक्याँ ? कै का यख जाण आपन ? उगैरा उगैरा। आवा चा पाणी पी ल्या, आवा छैल मु थौक बिसावा द्वी घड़ी आदि। यना आत्मीय अपण्यास मा भटक्यूँ मनखी बी अफूँ  सुबाटा चितान्दू।  अर तख क्वै मनू बि होलू ना, त भीड़ तै उणि नंगै कि चलि जाली पर उठाला नि। अर कखी कै मौल्ला गळियूँ मा अपच्छयाण अजाण मनखी भटकणु दिखै त डरौण्यां इंक्वारी अलग। हाँ जी कौन हो ? क्या तांक-झांक चल रही है लोगों के घरों में ? चल भाग, नही तो पुलिस के हवाला कर दूँगा।

      द रै, अब बोला ! इनू मैं दगड़ बि होणू छौ तै दिन। पर मिन सास नि तौड़ी अर भटकणू रयूँ। भैर बटी लोगूं घौरै घंटी बजान्दू, भितर बटे क्वै जनानी या मर्द चुळळ गेट खौली पूछदा, हाँ कौन ? किससे मिलना है ?

भैन्जी यहाँ कोई अबलू रौत बि रैता है।

अबलो ! क्या अबलो। ?

अज्जी गल्ती हो गई, अब्बल सिंग रावत है उनका नाम।

नहीं हम नहीं जानते किसी अब्बल या खराब को। अर ढक्क गेट बंद।

फेर हैका मोर पर, भैजी नमस्कार इधर कोई अब्बल सिंग रावत जी का घर बि है ?

नहीं ! मुझे पता नहीं आगे पूछौ।

ठेली वाळा मु। भैसाब आप इधर ही काम करते हो ?

तो क्या तुझे ये कनाट प्लेस दिख रहा है ? बोल क्या है ?

भै साब क्या है कि अब्बल सिंह रावत जी हैं ना चमोली गढ़वाळ बच्छैर गौं के, इसी मोनपुर में रैते हैं, उनका घर है बल यां। आप बि जानते हैं उने ?

भाईजान मोनपुर या मोहनपुर ?

जी भै साब मोहनपुर ।

वैसे ये मुहमम्दपुर है मोहनपुर नहीं। मोहनपुर पहले था अब नहीं।

पैले मतलब ?

मतलब कि अब नाम बदल गयो। पहाड़ी हो क्या ?

जी भै साब। आपका भला होगा माँ नंदा देणी होगी, अब्बल सिंह जी का घर बता देते तो। हमार गौं के हैं। अर क्या है ना, उनकी बैन रैती गौं में, बुढ्ढी हो गई, उसीने चिठ्ठी भैजी है, वयी देना था। ऐरां ! बिचारी का कोई सैं-गुसैं नयी है अब अब्बल सिंग के अलौ।

अरे भाईजान मेरा सर मत खयियो पाड़ी में। मुझे नहीं पता। वो गली नम्बर तीन में पता करो, वहाँ आपके एक पहाड़ी की चाय की दुकान है, वे बता देंगे। 

भैसाब बाटू। मतलब रास्ता बता देते तो ठीक रैता।

अरे भाई वो सामने टक्कर है ना, वहाँ से लेफ्ट ले लियौ, सौ दो सौ कदम पर एक और टक्कर मिलवेगा वहाँ से दाहिने हाथ को निकलियो, आगे फिर एक चौपुला आवेगा वहीं पर दाहिने को मिठाई की दुकान है मिश्रा वाली, वहाँ से बायें को सीधे आगे कदम-कदम बढ़ते रयौ फिर एक टक्कर, बायें को हो जयौ वही है गली नम्बर तीन।

      द रे किशनी, ठेली वळा का चौपुला टक्कर को चक्कर सूणी चक्कर औण लग्यूँ। सैरों मा क्वी सीद्दा मुख नि बतौन्दू अर कैन बतैयाली भी त यनु, वहाँ से निकल्यौ वहाँ से बडियौ।  पर चलो अबलू काकौ घौर त ढूंढणू छौ मिन, गमुली फूफु तैं बचन ज्व दियूँ छौ, कि फुफू येदां मि जरूर तेरी खबर सार पौंछै द्यूलु तेरा भुला मु। कति बार टरकली छौ मिन स्या दानी मनख्याण।

      त साब पूछी-पाछी पौंछयूं तै पाड़ी भै दुकान मा। साठी से अग्ने कु दानु मनखी, नमस्ते करि अर अब्बल काका का बारा मा पूछी। अरे भुला कख छिन तू अन्ध्यारा मा ख्वोजणु तै अब्बल तैं ? यख त जबार तलक सयी पता नि कैकू मिलण मुश्किल छन। मतबल मकान नम्बर, गली नम्बर, फ्लैट नम्बर सयी हूण चैंद। जन कि मेरु पता छन, गोबिन्द सिंह नेगी, पाड़ी चाय की दुकान, गली नम्बर तीन टक्कर के सामने। फेर अजक्याल त फून को जमानू छन, फून नम्बर नि तुमु मा ?

भैजी माँ दे होन्दी मौंस्याणी तैं किलै रून्दो, मतबल फून नम्बर नि छन जी।

त भौत मुश्किल छन रे भुला, यख त अमणी डवार वळौं तैं पता नि होन्दू कि समणी क्वौ परिवार रैन्दू, यू तेरु बछैर गौं नि।

भैजी कुछ त लाग बतावा मि ढूंढी ल्यौला।

      अरे भुला लाग क्या लगाण। आज सि बीस साल पैली यख भौत कमति मकान छया खेती-पाती होन्दी छै छक्की कि।  फेर बड़ा-बड़ा जमीना ठयकदारोन प्लौट काटी अर देखा-देखी सु मकानों जंगळ बणीगे। पैली यीं बस्ती कु नौ मोहनपुर छौ, औ सामणी मंदिर छन भगवान कृष्ण, मोहन मुरारी को। भगवान का नौ सि मोहनपुर। पर ! जन गुरौ कै दूळा मुंड कुच्यान्दो अर बाद मा सौजी-सौजी सर्रौ समै जान्द दूळा मा उनि (खुबसाट मा) यख बि सु जात। पैली द्वी चार छया अब सारौ मोनपुर मुहमम्दपुर बणेयाली तौन। वूं कु वोट बैंक बड़ीगे, पार्षद नेता वूं का बणियाँन त बस्ती नौं त बदलेणू ही छौ।

      अर सु छन हमारा हिन्दू बामण, जजमान, जाट, अगड़ा-पिछड़ा मा बंटयाँ। लड़ै-झगड़ा लूट-पाट आम बात छन यख। बेटी ब्वारियूँ रात-बिरात भैर-भितर औण मुस्किल होयूं। कै बग्वाळ फर पटाखा नि। कै होली मा रंग नि। पुलिस पौंछी जान्दी चम्म। अब सु छन दिन मा पाँच बार तै लौड स्पीकर मा अल्ला हो अकबर सुणणा। मजबूरी नौ मात्मागांधी होयूँ हमू तैं यख रौण। पैली भौत छया हमारा पाड़ी लोग यख पर अब सौजी-सौजी सब इना-उना बस्यान, सैद सु भै साब बि कखि हौर बस्यूँ होलू मिजाण।

भैजी तुम कन रौणा फेर यीं बस्ती मा ?

      भुला कख तक गलौंण यु बिदागत, भौत लम्बी छन। बल, भल खाणा वास्ता जोगी हुयूँ अर पैला बासा भुखौ रयूँ, वळी छुवीं छ हमारी। क्या बोन सर्री जिन्दगी यीं चा दुकानी मा काटी सैणी नोनू गात तौपणू रयूँ। आमदनी इतगा नि छन कि कै हैका जगा बसी जाउन। गौं छौड़ी भिज्यां साल ह्वैगी। तेरा सालौ  ऐग्यूं छौ यख। गौं मा तौं पुंगड़ौं औड़ू संतरा बि पता नि मिउणी। अब यनु नांगू कंगला-धंगला मुख कनै ल्हीजाण भै-भयात मा। मि जौं जख भाग ल्ही जौं तख। तरक्की कनू यीं सैर मा अयूँ पर यख पुटुग भरणा अलौ कुछ नि ह्वै साकू। नोना बि सु छिन तनि पुटुग गुजारौ कना। अब त मोरा चै बचा, सु चार कमरों एक फलैट छन मकाना नौ फर, तैमा यी छन द्वी ब्वारियाँ चार नाती नतैंणा अर हम द्वीयां लगै दस मनखियूँ कुटुमदरी को गुजर बसर होंणू। ल्या एक कुळा चा पी ल्या, यीं इलाका मा मेरी पाड़ी चा फैमस छन। बाकी अग्ने बदरी भगवानौं भरौसु। अर आप यख ? भै साबन सवाल करि।

भैजी मि बि यखी दरियागंज मा छन नौकरी कनू दसैक साल बटे।

औ भुला ठिक। नौकरी करा खूब पैंसा कमावा पर यख नि बसण रे ! आग लग्यां यूँ सैरों रंगा-चंगी मा। यख सि अपणू मुलुक खूब छन रौंत्याळौ। आपतौळी हवा पाणी। यु छिन फजल बटे राति ग्यारा बजी तक भिभड़ाटा बीच यीं दुकानी मा मुंड खाड़ डाळयूँ।

      चलो भैजिन बि अपणी हैसियत कु लगैन। किलैकि केवल पुटुग पालणा बजै सि तलौ मिंडखू बणि रावा त तेन भैर दुन्यां कख बटे द्यौखण। भैर रै किन इनि कै कुमच्याड़ा मा काटण कै काळा कनूड़ जंगळ सि कमति नि। अच्छा भैजी बोली मि निकळग्यूं तख बटे। पर ! अबलू काका को घौर नि मिल्यूं भौत फिरणा बाद बि।

      तै दुकानदार भैजी देखी याद आयी कि, बल ऐरां ! सर्री जिन्दगी दिल्ली रयूँ अर भाड़ ही झौकि। भैजी तैं क्या पता कि हमारा पाड़ी लोग तख राजधानी मा कखा-कख पौंछया। बड़-बड़ा उद्योगपती, नेता, अधीकारी, अपणी पाड़ी भाषा संस्कृति अर रिती-रिवाज का भंडारी पुजाळ संग्यौर। दिल्ली बटे यी हमारी भाषा साहित्यन सबसे बड़ू मुकाम हासिल करि। चै वेमा कन्हय्यालाल डंडरियाल, सुदामा पिरेमी, चन्द्रसिंग राही जी जना ऋषी लोग किलै नि छया जोन अपणी कंगली-धंगली मा बि सास नि तौड़ी अर गढ़वळी साहित्य अर संगीत तैं नै मुकाम नै पच्छयाण तक पौंछै इतियास रची।

      अब कमरा मा पौंछयूं त एक दां च्वैस ह्वै कि या ! तै गमुली फुफू क्या लिख्यूँ होलू चिठठी मा, सैद तै अब्बल काकौ पता को क्वी सुराग मिली जावो। जबकि चिठ्ठी पकड़ण बगत मिन गमुली फुफू तैं पूछीयाली छौ कि फुफू अब कख छन तु ये जामना मा चिठ्ठी भ्यौजणी।  सु छन लोग बिडीयो कौल कना, दिन रात चैट कना। त फुफुन बि सयी बोली छौ कि भतिजा मितैं क्या ? माळा गौरु धौळे-धौळ। मि अनपढ़न क्या जाणण तनमण्यां अजक्यालैं छुवीं। मिमा न फून ना तै अबलू फून नम्बर। सु पता बि बीस साल पैल्यै भेजीं चिठठी मा मिली मितैं, जबार तैन तख मकान बणायी छौ। तै सुजान सिगें नातिणिन बतैन तै पुराणी चिठठी पढ़ी कि बूढ़ी दिल्ली रौणी मोनपुर मा छन बल बूढ़ाजी गरौं मकान। तब मिन बोली बाबा ल्यौ कागज पिन्सन अर आज ल्येखी द्यै म्यार मनै छक्की कि। तै अपीड़ मनखी तैं।

मिन लिफाबो खोली अर चिठ्ठी बांचण लग्यूँ।

बल

      भुला तू अपणी कुटुम्बदरी नाती नतिणों दगड असल कुछल होलू तख। मि बि अब अपणा आखरी दिन गिणणी। चार बीसी अर चार ह्वैगी। आँखा नि दिख्यौंण्यां जमै ना। सरकारौ सु एक गैस दियूं पर सु बी बाळण नि औन्द मितैं अर स्या बृद्ध पिन्सनै बदै छक्की करि मेरी लदौड़ी चिरैंणी। फर निरभगी तू त कब्बी घौर बौड़ हून्द। कन कुन्नस ह्वै त्वैतैं। कन ढूंगौ लमडायी तिन घौरा नौ कु। अब त तू बि छाला फर पौंछण लेख ह्वेगी होलू मि जाण, मि से आठ साल त छवटू छै तू खड्यौण्याँ।

      अरे त्वै पता नि धरती पर औण सयी हम छवौरियाँ छया। तिन तीन साल मा यी बाबा टोकीयाळी छौ। अर तैका द्वी साल बाद ब्वै बी लमडी छै तै बौण पुन। तबार त्यौरा सालै उमर बटी मिन तु घुघती बोकी पाळी-पोसी, कै स्वारा भारौं तैं ऐ बोनू म्वका नि दिनी। अपणा हटगा तौड़ी जमीन जैजाद करी, गौड़ी भैंसियूँ घ्यू दूध बैची त्वै गौपेसुर डिग्री तक पढ़ाई लिखाई। अर जनै तू भली नौकरी लग्यूं तिन टप्प मुख लुकायी अपणी यी बैंणी तर्फां बटे। अरे त्यार बाना मिन ब्यौ बि नि करी अर सरी जिन्दगी त्यार बदलौ यीं पितर कूड़ी तैं जम्पणू रयीं।  अरे निरासिला त्वैन कब्बी नि स्वोचि कि मेरी दीदी का क्या हाल होला। लोकूं मा कति रैबार दिनी पर क्या मजाल कि तिन कब्बि एक चिठ्ठी कतरौ तक भेजी होलू। मिन त लोगूं मा यी सूणी कि त्वैल तखी कै देस्वाळ सरदारै नोनी दगड़ ब्यौ करी अर अब त नाती नतैण भवनचारी हुयीं, भुला अपणा होणा-खाणा कैतें पिड़ान्दा।    

      अबलू तबार कति साल बाद तिन एक चिठठी भेजी छौ कि दीदी मिन यखी मकान बणैयाली अर कब्बी त्वै बैद्यूला घुमौंणा वास्ता। आज बीस साल ह्वैगी तै चिठ्ठी उणि। मेरी आँखी लगी रैंद तबार बटै तै स्यातौळी सारी डीप मा कि मेरु भुल्ला ओणू होलू। अब त जग्वाळ करि मेरी आँख्यूँ जोत बि खतम ह्वैगी। तबारी तै चिठ्ठी फर लिख्याँ पता पर आज हपार पल्ला ख्वाळा रामसिंगा कणसा नोना किशनी हाथ छौ ये चिठठी भ्यौजणी।  अब त तू नौकरी बटे रिटैर बी ह्वैगे होलू। अब त्वै मा बगत ही बगत होलू, अब त औ रे कब्बी यीं टुटदा तिबारियूँ छूटदा मोरियूँ दर्शन कनू। अब मेरा दिन कमती छन। समाळ अपणी यीं पितर कूड़ी तैं ज्वा मेरी जिंदगी भरै समाळी छिन। मेरी जग्वाळ करिं कि जब तू ऐलो तब्बी मिन पराण छौड़ण। मि उणी बिस्वास छन एक ना एक दिन मेरु भुला बौडी औलू मिमा।

तेरी दीदी

गमुली (गायित्री)

      मेरा आँखा बटे तर्रर धार बोगिन कि रे किशन यनमण्यां बि मनखी रंदन लोग। चलो अग्नै बात अयीं-जयीं ह्वैगी। मि अपणी नौकरी मा मैस्यों। फर मुल्की भै बन्दों मा तै अबलू काका की पूछण नि भूल्यूं कि मिन बि द्यौखण सु ढुंगा सरैलौ मनखी। मिन परण करि कि जबार सु बुढ़या मि उणी मिल्लो मिन सु बच्छयौर गौं पौंछौंण तक नि छौड़ण।

      यनी एक दां पंचकुयां रोड गढ़वाळ भवन मा एक कारिज छौ परबासी भै बंदों उरयूं। त दगड़यूँ का न्यूता फर चलग्यूँ। तख अपणा मुल्की भै-बन्दों दगड़ मुखाभेंट ह्वै जान्दीं। तै दिन तखी छुवीं बत मा अब्बल सिंग काका की पूछण पर हमारा इना सैकोट गौं का एक बुजुर्ग बौढ़ान बोली कि बेटा कै अब्बल सिंगै बात कनू तू बच्छयौर गौं वळा की।

मिन हौं बोली।

अरे बेटा सोब अपणा करम को फल छिन। अपणू बूती काटन्दा जु काटन्द। गौं सि भैर हम नौकरी बाना बि आन्दा अर छंद औण पर बसी बि जान्दा। पलायन जुगों बटी सतत परकिरया छन। पलैन नि होन्दू त मनखी सरा दुन्यां मा कनै बसदो। पर जख बि जावा, जख बि रावा पर अपणी जड़ जमाळ नि छौड़ी चैंद।

      अब देखा यख हम जथ्या लोग अयाँ सब क्वी छव्टी, क्वी बड़ी पोस्ट पर छन। सोब अपणू गुजर-बसर कना, पर दगड़ मा अपणी भाषा संस्कृति की समाळ बि कना। देखा सु अग्नै मंच फर सब्बी कवि लिख्वार छन ज्वा अपणी भाषा मा पोथियां ल्यौखणा। क्वै गीत रचणा, क्वी गाणा छिन। अपणी पाड़ी संस्कृति ज्यून्दी धरीं हमारी यख। अपणा बार-त्यौवार सब्बी कुछ मनोन्दा हम। बार-त्यौवार सुख- दु:ख पर गौं मा जाणा रन्दन। गौं कि कूड़ी बाड़ी खैनी करिं च। भलै लोगूं मा इजार-बिजार छन पर बांजी नि छ। साल मा एक द्वी वार अपणा द्यौथानों मा पूजा मंडाण लगाण नि भूलदा।

      बेटा जब मनखी कै हैका जगा जान्द त वेतैं अपणी परम्परा भाषा संस्कृति तैं दगड़ी ल्हीजाण चैंद ना कि अपणी बिसरी हैके ब्वे तैं ब्वे बोलण चैंद। पर बेटा कुछैक लोग छन जौं कि आँखी सैरों यीं चक्काचौंध मा चौंध्यै जान्द अर वूं तैं अपणी जड़ नि दिख्यैन्दी।  तौंमा सु अब्बल सिंग बि छयौ। तैकी खूब धैन-चैन छै ज्वानी मा। औन्दू छौ सु कब्बी कबार भूल्यूँ-भटक्यूँ हम पाड़ियूँ ब्यौ बरियतियूँ मा। तै मोहनपुर मा छौ तैको मकान। कुछैक साल बाद तख दंगा होण सि सु गाजियाबाद चलिग्यूं। तुमुतैं पता होलू कि ब्यौ बि तेन यखी सरदारिण दगड़ करि। नौना बाळा खूब हुस्यार हुयां तैका पढ़ण मा। अब विदेस भाज्याँ बल।

      रिटेर होणा कुछैक साल बाद तैकि अर तैकि बुडळी क्या नि पटी स्या तैतें छौड़ी अपणा नोनू दगड़ चलिन बिदेस अर सु छूटी गयूं यकुलौ तै फ्लैट पर। द्वीयैक साल पैली मिन बि अखबार मा पढ़ी कि गाजियाबाद हिल इनक्लेव एक फ्लैट मा एक बुजुर्ग मरयूं मिली बल। जब अगल-बगल वळौं तैं बास आई तब पता चली। अखबार मा तैको  पता दियूं छौ कि उत्तराखण्ड मूल को छन अर तैका नोना बाळा कनाडा मा रन्दन। द रे बेटा यु छन कै राजन-बाजन मनखी को दीनौठ हौणा हाल, क्या बोन तब।

      तति सूणी मेरी बाज गौळै मा अटगी कि अटगी रैगी, कि अगला मैना जब मि घौर जौला त स्या गमुली फुफू सणी क्या जबाब द्यूला कि तेरौ भुला सरैल से भी अर जड से भी दीनौठ ह्वै गयूं, जैकि जग्वाळ मा तिन अज्यूँ तलक अपणू पराण थामियूँ।

 

दीनौठ - हर्चण/गुम ह्वै जाण। जै कु कुछ अता-पता नि मिलदो। 

कानी : बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’

ग्वाड़, मटई वैरासकुण्ड चमोली

कोई टिप्पणी नहीं: