घर मनुष्यों का समूह नहीं
ममता का संगठन होता है
घर मात्र एक मकान नहीं
घरवालों का जिगर होता है
घर केवल आश्रय नहीं
संतोष सकून का मंदिर होता है
जहाँ परिजनों का परिश्रम देव
चैन की निद्रा सोता है।
घर के लिए
प्रीत का मलहम चाहिए,
महल नहीं.
प्रेम पीड़ा का निवाला चाहिए
महाभोग की थालियां नहीं
तन आवरू ढकने को वस्त्र चाहिए
महंगे शूट बूट नहीं
मन दान को दाने चाहिए
मेवे मिठाईयां नहीं
एक दूजे की गोद में लेटने को कुछ जगह चाहिए
पृथक कमरे नहीं
मकान कहीं भी हो सकता
लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
जो श्रद्धा की पाती मांगते हैं
तर्पण के रूप में
और वे घर की चिरायु समृद्धि
के लिए देते हैं
आशीष क्वथळी भौरी कि।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
10 टिप्पणियां:
आभार महोदया
मकान कहीं भी हो सकता
लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
सचमुच सहयोग और समर्पण की भावनाओं को आत्मसात् किये हुए होता है घर ।घर की महत्ता को इंगित करती हृदयस्पर्शी कृति ।बहुत सुन्दर सृजन बलबीर सिंह जी ।
लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
जो श्रद्धा की पाती मांगते हैं
तर्पण के रूप में
और वे घर की चिरायु समृद्धि
के लिए देते हैं
आशीष क्वथळी भौरी कि।
घर के संपूर्ण स्वरूप को अभिव्यक्त करती सुंदर सार्थक भावप्रवण और मर्मस्पर्शी रचना आदरणीय सादर
सच घर तो अपनी मातृभूमि में ही है शहरी घर नहीं मकान है, जहां एक साथ रहते भी अजनबी से रहने लगते हैं लोग,,,,
बड़ी याद दिला दी आपने गांव के घर की,,,
सुन्दर
धन्यवाद बहनजी 🙏🙏सह्रदय वंदन
धन्यवाद बहनजी 🙏🙏🙏सहृदय आभार
धन्यवाद जोशीजी
बहुत सुन्दर
आभार महोदया जी
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