गुरुवार, 1 अगस्त 2024

घर




घर मनुष्यों का समूह नहीं
ममता का संगठन होता है
घर मात्र एक मकान नहीं
घरवालों का जिगर होता है

घर केवल आश्रय नहीं
संतोष सकून का मंदिर होता है
जहाँ परिजनों का परिश्रम देव
चैन की निद्रा सोता है।

घर के लिए
प्रीत का मलहम चाहिए,
महल नहीं.

प्रेम पीड़ा का निवाला चाहिए
महाभोग की थालियां नहीं

तन आवरू ढकने को वस्त्र चाहिए
महंगे शूट बूट नहीं

मन दान को दाने चाहिए
मेवे मिठाईयां नहीं

एक दूजे की गोद में लेटने को कुछ जगह चाहिए
पृथक कमरे नहीं

मकान कहीं भी हो सकता
लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक 
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
जो श्रद्धा की पाती मांगते हैं
तर्पण के रूप में
और वे घर की चिरायु समृद्धि
के लिए देते हैं
आशीष क्वथळी भौरी कि।

@ बलबीर राणा 'अडिग' 

10 टिप्‍पणियां:

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आभार महोदया

Meena Bhardwaj ने कहा…

मकान कहीं भी हो सकता
लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
सचमुच सहयोग और समर्पण की भावनाओं को आत्मसात् किये हुए होता है घर ।घर की महत्ता को इंगित करती हृदयस्पर्शी कृति ।बहुत सुन्दर सृजन बलबीर सिंह जी ।

Abhilasha ने कहा…

लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
जो श्रद्धा की पाती मांगते हैं
तर्पण के रूप में
और वे घर की चिरायु समृद्धि
के लिए देते हैं
आशीष क्वथळी भौरी कि।

घर के संपूर्ण स्वरूप को अभिव्यक्त करती सुंदर सार्थक भावप्रवण और मर्मस्पर्शी रचना आदरणीय सादर

कविता रावत ने कहा…

सच घर तो अपनी मातृभूमि में ही है शहरी घर नहीं मकान है, जहां एक साथ रहते भी अजनबी से रहने लगते हैं लोग,,,,
बड़ी याद दिला दी आपने गांव के घर की,,,

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद बहनजी 🙏🙏सह्रदय वंदन

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद बहनजी 🙏🙏🙏सहृदय आभार

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

धन्यवाद जोशीजी

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

बलबीर सिंह राणा 'अडिग ' ने कहा…

आभार महोदया जी