गुरुवार, 19 जून 2025

पंचायती चुनाव : एक विमर्श



स्वच्छ व पारदर्शी चुनाव के लिए इस सवाल का जब तक संतोषप्रद उत्तर नहीं मिल जाता तब तक किसी को वोट करना एक शिक्षित व जागरूक वोटर की पहचान नहीं होती। नहीं तो मात्र भीड़ का हिस्सा बनने वाली बात है और यह पूर्व स्थिति को यथास्थिति रखने वाला उपक्रम होगा। साथ में इस सवाल के साथ ये सवाल भी कनेक्ट है कि क्या मुझे पता है कि कुशल या अच्छा नेता कौन होता है ? या कैसा होना चाहिए ? सर्वगुण सम्पन्न कोई नहीं होता, फिर भी हमारे दिमाग़ में इस सवाल का उठना और इसका जबाब जानना जिम्मेवारी का काम है। मूल विषय वर्तमान पंचायती चुनाव पर आऊं इससे पहले संक्षिप्त में जानते हैं कि कुशल राजनेता कौन होता है? एक कुशल राजनेता वह है जो:-

1.    सार्वजनिक हित में प्रभावी ढंग से काम करने योग्य हो।

2.    नीतियों को लागू करने और चुनौतियों का सामना करने के लिए उचित गुणों व कौशल का प्रदर्शन कर सके। यानि एक्टफुल और टेक्टफुल।

3.    जो स्वहित से परे हो दूरदर्शी हो ।

4.    जो प्रशासन और जनता के साथ वेहतर संवाद स्थापित करने मे सक्षम हो ।

5.    जो समय पर वेहतर डिसीजन लेने वाला हो ।

6.    जिसके अन्दर नेगोसिएटिंग स्किल अथवा सहकारिता व समझौते की क्षमता हो ।

7.    जो ज्ञान रखता हो, अपने ग्राम की, समाज की, क्षेत्र व देश प्रदेश की और अंतराष्ट्रीय परिदृश्य से वाकिफ हो तो अति उत्तम।

8.    जो समस्या सुनने वाला हो और हालात का विश्लेषण करके उत्तम निष्कर्ष निकाल सके।

9.    निःस्वार्थ व पक्षपात रहित हो ।

10.   जो व्यवसायिक नहीं भावनात्मक रूप से अपने लोगों के साथ जुड़ा रहे, खड़ा रहे।

और आखिर में  कि - जो जनता के प्रति सेवा व समर्पण की भावना रखने वाला हो और केवल भावना रखना ही नहीं उसे जमीन पर उतारने वाला हो। 

 

वैसे सफल नेता के 23 गुण बताये गए हैं, लेकिन कहते हैं किसी में 40 प्रतिशत भी गुण मैजूद हो तो वह जनता की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा कर सकता है। लेकिन मोटा-मोटी उपरोक्त क्वालिटी का होना जरूरी होता है नहीं तो क्या ब्वन ? जन आज तलक होयूँ तनि अगनै बि होलू, बिल्कुल सत्य है कि मैं खुद बदलाव के लिए तैयार नहीं हूँ तो और भी नहीं होंगे यह पक्का है। अच्छे बदलाव के लिए सुरूवात खुद से ही करनी होती है लेकिन आम ऐसा देखने को नहीं मिलता, आम का समाज ‘जख देखि घळकि तखि ढळकि’ वाला ही काम करता है। एक उपयुक्त नेता के लिए हमें उपरोक्त बातों का विश्लेषण स्वहित को परे रखकर करना होगा, फिर सही जबाब मिलना तय है और यह जबाब हमें उपयुक्त निर्णय लेने में मदद करेगा। यह व्यक्ति विशेष की स्वच्छ रीति और नीति होती है।

अब आते हैं मूल विषय वर्तमान पंचायति चुनाव में हमें किस किश्म के व्यक्ति को चुनना चाहिए। पंचायती चुनाव से संबन्धित नेतृत्व में प्रमुखतया ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत व जिला पंचायत सदस्य हमारे गांव व क्षेत्र के विकास की धुरी पर विराजमान होते हैं तथा इनके ठीक उपर केन्द्र में होते हैं ब्लॉक व जिला अध्यक्ष। अगर साफ आईने में देखोगे तो उपरोक्त नेतृत्व चाहे तो अपने ग्राम व क्षेत्र का समुचित विकास कर सकते हैं और करते आए हैं इसमें कोई दो राय नहीं। विकास केवल और केवल चाहत से जुडा मुद्दा है अगर सम्बंधित व्यक्ति अपने स्वार्थ को परे रखकर सरकार की विकासोन्मुख योजनाओं को जमीन में उतारता है तो वो कार्य भी संभव है जो आम जन मानस की सोच से बाहर हो। बसरते नेता के पास सही रोड़ मैप हो और पहल करने की क्षमता हो। ऐसे कई उदाहरण हमारे आस-पास हैं। विशेषकर ग्राम प्रधान की शक्तियां असीमित तो नहीं कहा जा सकता लेकिन अपने ग्राम का चंहुमुखी विकास करने के लिए पर्याप्त तो हैं ही । 

अब सवाल यह उठता है कि हम किस प्रकार के योग्य व्यक्ति को चुने जिन्होने दावेदारी ठोकी है। क्योंकि वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में आपको विभिन्न प्रकार के क्षमतावान व्यक्ति मिल जायेंगे। जैसे कि:-

1.    वह व्यक्ति जो केवल चुनाव के वक्त पोस्टर बॉय बनकर किसी अन्य व्यक्ति के फायदे हेतु वोट काटने आता है ?

2.    वह व्यक्ति जो पिछले पाँच साल तक जनमुद्दों व समाजहित कार्यों में नदारद रहता है, उसे ग्राम व क्षेत्र का विकास केवल चुनाव के वक्त नजर आता है एवं उसकी कर्मठता, ईमानदारी जुझारूपन और सुयोग्यता ऐन चुनाव वक्त ही गनडयालै के जैसे सींग बाहर निकल आते हैं।

3.    वह व्यक्ति जो बड़े नेताओं के आगे पीछे घूमता है, झंडाबरदार रहता है, जिसके ऊपर राजनीती वरदहस्त होता  उसके पास पैंसा होता है, कभी कभार विशिष्ट अथिति बनने हेतु ही गाँव व क्षेत्र में दिखाई देता है ।

4.    वह व्यक्ति जिसके पास पैंसा होता है और समाज सेवा का जज्बा भी रखता है एवं समाजहित यदा-कदा खपता और खर्च भी होता रहता है।

5.    वह व्यक्ति जो जमीन में नहीं लेकिन सोशियल मिडिया का विकासवीर होता है, और हर छोटे-बड़े राजनैतिक कार्यक्रमों में सहभागिता करना खुद का सौभाग्य बताता है। माला मंच प्रेमी।

6.    वह व्यक्ति जो दिन रात ग्राम व क्षेत्रीय मुद्दों को उठाता है और उन्हें यथासंभव शासन प्रशासन से नियोजन की कोशिश करता रहता है।

7.    वह व्यक्ति जो केवल अपने रसूख एवं धनबल पर वोट खरीदना चाहता है।

8.    वह व्यक्ति जिसके चुनावी पोस्टरों में नाम के आगे या पीछे पूर्व फलाने का फलाना लिखा होता है साथ में नेता होने के साधारण गुण व प्रेरक स्लोगन भरे पड़े होते हैं, यानि पूर्वजों के कंधों से फायर करने वाला।

9.    वह व्यक्ति जो केवल मुद्दे उठाता इम्प्लीमेन्टेशन उसकी डिक्सनरी से गायब रहता है। यानि बसग्याळी मेंढक। एक टटर्राट।

10.   वह व्यक्ति जो अपने पिछले कार्यों के बल पर मैदान में उतरता है।

11.   वह व्यक्ति जो शालिनता, संजीदगी एवं लगन से केवल और केवल समाजहित पर लगा रहता है, अपने काम का बखान नहीं करता ना ही कहीं आगे पीछे घूमता, छपास और दिखास दे दूर वह केवल समर्पण जानता है।

उपरोक्त तमाम गुणीजन चुनाव के वक्त हमें दिख जाते हैं इसमें से कुछ प्रबल दावेदारी में होते हैं और कुछ दुविधा कि पैलि त पदानचारी निथर घपरौळ ही सही। हमें किसे चुनना है यह हमारी परख व परिपक्वता व निर्भर करेगा। वैसे वर्तमान राजनैतिक चरित्र बहुत विद्रुप व दूषित हो गया है जिसमें धनबल ज्यादा प्रभावी हो रहा है।

वर्तमान वोटरों को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है पहला तथाकथित बुद्धीजीवी वर्ग जो खुद को चुनावों से दूर रखता है कि नहीं जी मुझे चुनावों से कोई लेना देना नहीं। दूसरा आम मध्यम वर्ग जो कुछ कुछ सही निर्णय लेता है और तीसरा वर्ग वह है जो चंद पैंसों व शराब के लिए अपना वोट गिरवी रख देता है और यही लोग निर्णायक वोटर होते हैं, राजनेताओं को फोकस इन्हीं पर रहता है, लेकिन ग्रामणि परिदृश्य में देखा जाय तो यहाँ लगभग समान वर्ग होते हैं वे सही भी समझते हैं और उपर से पैंसों पर तीते दांत गाड़ भी देतें हैं, बस इन्हीं सब स्थितियों व हालातों से जगरूक होना और कराना अति आवश्यक है। जिस दिन ग्रामिण वोटर पूर्ण जागरूक होकर निर्णय लेता है तो ग्रामिण क्षेत्रों का समुचित विकास होने से कोई नहीं रोक सकता।

 

@ बलबीर राणा ‘अडिग’

 


शुक्रवार, 13 जून 2025

सब कुछ ठीक था तो कैसे कुछ भी ठीक नहीं हुआ?



जाते समय तिलक करते हुए पिताजी कहता है ठीक से जाना बेटा पहुँचते ही फोन कर देना, वहीं विदा लेते समय बीबी कहती ठीक से जाना, और हाथ हिलाते हुए बच्चे भी कहते पापा ठीक से जाना, हैप्पी जर्नी। विदा देने वाले ठीक से जाना कहते तो स्वागत करने वाले भी ठीक से आना कहते हैं। शुभयात्रा दोनों तरफ का कॉमन विसिंग शब्द होता है। यात्रा करने वाले यात्री इन सब ठीकों को ठीक से समझते हैं और ठीक से अनुपालन भी करते हैं जो ठीक हमारे काबू में होता है। लेकिन परबस, परकाबू की ठीक को कैसे ठीक किया जाय यह सदैव का यक्ष प्रश्न बना होता है, और हमारे पास विश्वास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। पता चला कि गाड़ी के ड्राइवर ने शराब पी रखी है तो उस गाड़ी को छोड़ देंगे लेकिन ड्राइवर को झपकी आ गई या गाड़ी में तकनिकी खराबी हो गई इसकी जिम्मेवार किसकी? 

    रेलवे या विमानन कर्मचारियों की गल्ती का कौन जिम्मेवार? विमान सब तरह से ठीक होने के वाबजूद भी चंद मिनट में कैसे चकानाचूर हो जाता है, और कई जिंदगियां आकरण कालकवलित हो जाती हैं, इसे ठीक करने की ठीक जिम्मेवारी किसकी है ? इस अठीक को कौन ठीक करेगा?  जांच पड़ताल होती है कारण पता चलता है, एक्शन प्लान बनता है, पहले पहले-पहल खूब एक्शन होता है, फिर धीरे धीरे तरंग का बल धीमा हो जाता है और लापरवाही से हादसा ही नहीं आपदा आन पड़ती है, आम आदमी प्रभु इच्छा, होनी होगी मान दिल को तसल्ली देता है, तसल्ली करने के अलावा कुछ चारा भी तो नहीं बचता! सरकार मुवाबजे से पीड़ितों का मुँह बंद कर देती है, कभी कभी गुनहगार बच निकलता है, और यह चलन तब तक चलता रहता है जब तक अगली घटना नहीं होती। घटना के बाद जागना, जागकर सोना और फिर घटना पर जागना, यही तो चलता है! 

ऐसा नहीं कि जो जिम्मेवार लोग हैं वे हादसों के भुक्त भोगी नहीं होते, होते सब हैं लेकिन बिडंबना ये है कि चेतता कोई नहीं। फिर हादसों का शिकार हुए बेखबर लोग खबरों के बन जाते हैं, दुःख, श्रद्धांजलि व संवेदनाओं के मलहम से घावों को भरने का उपक्रम चलता है। सब कुछ ठीक होने पर भी कैसे  कुछ भी ठीक नहीं हुआ? इस तरह की अकाल मृत्यु का हरण हो सकता है बसरते ठीक के लिए जिम्मेवार लोग ठीक को ठीक से समझ जाएँ और ठीक को ठीक से अमल में लाऐं। नहीं तो इसी तरह सपनों के टूटने के साथ टूटते शब्दों की चित्तकार राष्ट्र को त्रासद करती रहेगी।


12 जून 25 अहमदाबाद विमान हादसे में कालकवलित आत्माओं को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏


@ बलबीर राणा अडिग

गुरुवार, 5 जून 2025

छद्दमता

शूरत्व नहीं आहत है

ना शौर्य अशक्त हुआ
ना भुजबल क्षीण हुआ
ना पराक्रम निहत हुआ

हम आर्यावर्त भरत वंशी
जबड़ा फाड़के देखते हैं
छुपा हो कहीं भी अहि
बिल में घुसके भेदते हैं

केशर की पीत क्यारी
लाल जो तुमने बनायी 
शर्मिंदा है कश्यप धरा
जन्नत आंशू बहा रही

धर्म पूछ निहत्थों पर
बर्बरता मचाने वालो
सुहास सुहागिनों का
सर, सिंदूर मिटाने वालो

समसाबाड़ी पीर पंजाल
अब तुम्हें नहीं छुपाने वाला
दिया जिसने राशन रसद
वो अब नहीं बचाने वाला

माँ भारती के वीर सिपाही
क़ब्र तुम्हारी खोद रहे
देव चिनार धरती को
छद्दम विहीन कर रहे।

@ बलबीर राणा 'अडिग'