गुरुवार, 5 जून 2025

छद्दमता

शूरत्व नहीं आहत है

ना शौर्य अशक्त हुआ
ना भुजबल क्षीण हुआ
ना पराक्रम निहत हुआ

हम आर्यावर्त भरत वंशी
जबड़ा फाड़के देखते हैं
छुपा हो कहीं भी अहि
बिल में घुसके भेदते हैं

केशर की पीत क्यारी
लाल जो तुमने बनायी 
शर्मिंदा है कश्यप धरा
जन्नत आंशू बहा रही

धर्म पूछ निहत्थों पर
बर्बरता मचाने वालो
सुहास सुहागिनों का
सर, सिंदूर मिटाने वालो

समसाबाड़ी पीर पंजाल
अब तुम्हें नहीं छुपाने वाला
दिया जिसने राशन रसद
वो अब नहीं बचाने वाला

माँ भारती के वीर सिपाही
क़ब्र तुम्हारी खोद रहे
देव चिनार धरती को
छद्दम विहीन कर रहे।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

dhanyawad Digvijay ji

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर