बुधवार, 23 जुलाई 2025

गजल


 

संजीदा कब तक, कितना हुआ जाय,

ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जिया जाय।


​बहुत बड़े सपने देखने वाले भी चले जाते हैं

सपनों के पीछे कहाँ क्यों कर भागा जाय।


​हैं सभी, कुछ अरसों के राहगीर यहाँ,

राह जो भी हो उसी पर बिंदास जिया जाय।


​औलाद, संतति, सब हैं, वे अपना जिएँगे,

अपने वक़्त का भार उन्हें क्यों सौंपा जाय।


​छोड़ गए पितृ सभी, जीवन भर की फंचियाँ,

उनकी फंचियों पर कब तक बसर किया जाय।


​हँसते मुस्कुराते जो वक़्त कट रहा अच्छा है,

बेवक़्त का रोना, किसी के लिए क्यों रोया जाय।


​अपने बारै के गारै सभी पीसते हैं अडिग,

किसी और के गारों को जबरन पीसा जाय।


फंची - कमाई का पुलिंदा 

बारै के गारै - अपने समय का काम 


@ बलबीर राणा अडिग 

रविवार, 6 जुलाई 2025

चुनाव का मौसम



बल, भैजी कुछ नै तो, कुछ तो किया जाय,

चुनाव का मौसम है टिकट ही लिया जाय।


बसग्याळ में रगड़-बड़ हो तो हो, 

सरकार का कैना तो माना जाय।


पैले तो होगी पदानचारी, खुल्लम-खुला,

नै तो फुल्ल-फ्लैस घपरौळ ही किया जाय।


मरद शीट नहीं है तो क्या हुआ,

मैला शीट पर ब्वारी को ही खड़ा किया जाय। 


मेरा क्या ? फिर बोक लूंगा झंडा-डंडा,

पैले फलाने भैजी के वोट तो काटा जाय ।


बैठणे के लिए खीसे ही तो भराणा है? दिदा,

बैठ जाएंगे, काँ दिक्कत? पहले उठा तो जाय।


क्या करणा ? ठगाणा तो है ! विकास के नाम,

जो करणा, देख लेंगे, पहले ये तो किया जाय।


वोट ? वोट अपणे आप मिलेगा काँ जायेगा,

पैले पेटियों का इंतजाम तो किया जाय।


बैनर पर झुझारू, ईमानदार, कर्मठ के अलावा,

भुलाराम, पूर्व फलाना जरूर लिख्खा जाय।


कब तक रहूंगा सक्रीय बम कार्यकर्ता बन,

अब माननीय बनने के बाटे बम फोड़ा जाय।


बल, बड़े नेता बनने के लिए अडिग,

पैले सैंण के गोरू भेळ जरूर हकाया जाय।


@ बलबीर राणा 'अडिग'