बुधवार, 23 जुलाई 2025

गजल


 

संजीदा कब तक, कितना हुआ जाय,

ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जिया जाय।


​बहुत बड़े सपने देखने वाले भी चले जाते हैं

सपनों के पीछे कहाँ क्यों कर भागा जाय।


​हैं सभी, कुछ अरसों के राहगीर यहाँ,

राह जो भी हो उसी पर बिंदास जिया जाय।


​औलाद, संतति, सब हैं, वे अपना जिएँगे,

अपने वक़्त का भार उन्हें क्यों सौंपा जाय।


​छोड़ गए पितृ सभी, जीवन भर की फंचियाँ,

उनकी फंचियों पर कब तक बसर किया जाय।


​हँसते मुस्कुराते जो वक़्त कट रहा अच्छा है,

बेवक़्त का रोना, किसी के लिए क्यों रोया जाय।


​अपने बारै के गारै सभी पीसते हैं अडिग,

किसी और के गारों को जबरन पीसा जाय।


फंची - कमाई का पुलिंदा 

बारै के गारै - अपने समय का काम 


@ बलबीर राणा अडिग 

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