संजीदा कब तक, कितना हुआ जाय,
ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जिया जाय।
बहुत बड़े सपने देखने वाले भी चले जाते हैं
सपनों के पीछे कहाँ क्यों कर भागा जाय।
हैं सभी, कुछ अरसों के राहगीर यहाँ,
राह जो भी हो उसी पर बिंदास जिया जाय।
औलाद, संतति, सब हैं, वे अपना जिएँगे,
अपने वक़्त का भार उन्हें क्यों सौंपा जाय।
छोड़ गए पितृ सभी, जीवन भर की फंचियाँ,
उनकी फंचियों पर कब तक बसर किया जाय।
हँसते मुस्कुराते जो वक़्त कट रहा अच्छा है,
बेवक़्त का रोना, किसी के लिए क्यों रोया जाय।
अपने बारै के गारै सभी पीसते हैं अडिग,
किसी और के गारों को जबरन पीसा जाय।
फंची - कमाई का पुलिंदा
बारै के गारै - अपने समय का काम
@ बलबीर राणा अडिग
8 टिप्पणियां:
सुन्दर
सुन्दर
वाह!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 6 अगस्त 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह! क्या बात है!
अच्छी
dhanywad sir
guruji pranam
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