गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

घुमक्कड़ी रुपिन सुपिन घाटी



घुमक्कड़ी की कड़ी में रुपिन व सुपिन नदियों का संगम नेटबाड़ के साथ सौड़-सांकरी, जखौल, दिवारा, मोरी ब्लॉक का वृतांत। नेटवाड़ से ही रुपिन -सुपिन नदियां मिलकर टौंस (तमस) नदी के नाम से जानी जाती है, टौंस डाकपत्थर में जाकर यमुना से मिलती है। रुपिन नदी का मुख्य उदगम बराड़ ताल ग्लेशियर है जो माझी बन से आगे पश्चिम में डोडाक्वार हिमाचल और उत्तर में तिब्बत से लगता है, नेटवाड़ से आगे रुपिन घाटी में 8-10 सीमांत गाँव हैं। वहीं सुपिन नदी का उदगम हरकीदून ग्लेशियर है। उत्तरकाशी जिले के इस सीमांत मोरी ब्लॉक में मुख्य तीन पट्टियाँ हैं, सिगतूर पट्टी जो पुरोला से उत्तर  पश्चिम का भूभाग टौंस नदी के साथ मोरी, नेटवाड़ का क्षेत्र हैं, वहीं पंचगाईं पट्टी नेटवाड़ से उत्तर में सुपिन घाटी वाला क्षेत्र है और नेटवाड़ के पश्चिम में रुपिन घाटी के साथ फ़ते पर्वत पट्टी आती है ।

पंचगाईं पट्टी मोरी ब्लॉक का मुख्य पर्यटक क्षेत्र है जिसमें

"गोविन्द नेशनल पार्क" के अंतर्गत सौड़-सांकरी, उत्तराखंड के बड़े गाँव में से एक जखोल गाँव, द्योक्यारा बुग्याळ, हरकीदून, केदार कांठा बुग्याळ, पाली पास एवं ब्लैक पीक आदि 10-15 ट्रेक पड़ते हैं । वर्तमान पुरोला विधायक श्री दुर्गेस्वर लाल आर्य फिताड़ी गाँव के हैं और चर्चित बद नाम हाकम सिंह लिवाड़ी से हैं, जो जखोल घाटी का सबसे अंतिम गाँव है।

सौड़-सांकरी से हरकीदून ट्रेक का आखरी गाँव ओसला, तालुका, डॉटमीर है, वर्तमान में ट्रेकर सांकरी में रुकने के वजाय सीधे तालुका जाना ज्यादा सुगम मानते हैं क्योंकि तालुका तक सड़क संपर्क हो चुका है।

विकास की दृष्टि से राज्य के अन्य सीमांत क्षेत्रों के अनुरूप यह क्षेत्र भी काफी कुछ मूलभूत अवश्यकताओं की बाट जोह रहा है, जिस तरह सेब बगवानी व ट्रेकिंग में यह क्षेत्र व्यक्तिगत आजीविका में सक्षम होता जा रहा है वहीं उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य व सड़क जैसे विकासन्नोमुख योजनाओं के लिए अभी भी आशा लगाए बैठा है, एक बानगी मोरी से आगे राजमार्ग की हालत आपको इसकी गवाही देता है।

आम लोक जीवन चर्या में नकद फसल व पशुपालन अब कम हो गया है कारण बागवानी में सेब उद्यान मुख्य आजीविका का साधन बन गया है।

गाँव अभी अपने वैभव में है, सभी गाँव परिवारों से भरे पड़े हैं, क्षेत्रीय लोगों ने अपने गाँव के साथ बजारों में भव्य मकान, होम स्टे, होटलों पर अच्छा इन्वेस्टमेन्ट किया हुआ है। यह आमजन की अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और लगाव को दर्शाता है।

गाँव में परिवारों की मैजूदगी केवल सरकारी और अच्छा रोजगार बाहर नहीं होने का कारण है, बाकी पलायनी सोच यहाँ भी वही है जैसे पूरे उत्तराखंड में है, जिसको अच्छा रोजगार व सरकारी नौकरी मिली रही वह भाग ही रहा है।

क्षेत्र अति शर्द होने के कारण मुख्य लोक पहनावे में स्थानीय भेड़ की ऊन का कोट पेंट देखा जा सकता है जिसमें महिलाओं की फज्जी (ऊन का लम्बा कुर्ता व सलवार) आकर्षक व पारम्परिकता प्रथमम का द्योतक है। सिखोली (जिसे हिमाचली टोपी नाम से भी जाना जाता है ) पुरुषों के सर पर हर समय सजी रहती है। साथ ही फज्जी के साथ कमरबंध।

ईष्ट देवता के रूप में फ़ते पर्वत पट्टी के ईष्ट देवता सैड़कुलिया महासू (महासू वीर), पंचगाईं में सोमेश्वर महाराज व सिगतूर पट्टी के ईष्ट देवता कर्ण महाराज हैं। कर्ण महाराज का भव्य पौराणिक मंदिर नेटवाड़ से उपर देवरा गाँव में स्थिति है, वास्तुशिल्प की दृष्टि से यह मंदिर भी  शिखरयुक्त  है व नयाँ ही बना है यानि आठरवीं या उन्नीसवीं शताब्दी का। मंदिर के प्रांगण में पाषाण निर्मित अनेक देव प्रतिकों के साथ अशोक स्तम्भ के चार मुखी शेर की आकृति विराजमान हैं। कर्णमहाराज के पुजारी देवरा गाँव के नोटियाल पंडित हैं और गाँव के नाथ जाति खुद को कर्ण के वीरों के रूप में मानती है।

दो राज्यों उत्तराखंड-हिमाचल, दो जनपद देहरादून-उत्तरकाशी के सीमांत जौनसार-भाभर, बंगाण व रवांईं

लोक-संस्कृति का साझा ईष्ट देवता महासू महाराज पूरी टौंस घाटी के अधिष्ठाता, रक्षक और न्यायकर्ता देवता के रूप में सर्व पूजित हैं।

बोली भाषा की दृष्टि से देखा जाय तो उत्तरकाशी जिले के पश्चिम सीमांत इस क्षेत्र की बोली रवांईं, बंगाणी और हिमाचली का मिश्रित रूप है, फिर भी समस्त मोरी ब्लॉक में अपवाद कुछेक क्षेत्रीय टोन के रवांईं ही बोली जाती है और आम जन अपने को रवांईं से ज्यादा कनेक्ट करता है इतर बगाण या हनोल।

आम जन गढ़वाली भाषा को ठीक-ठाक समझ-बींग लेते हैं। "मेरि भाषा मेरि पछयाण" अभियान के तहत आम लोगों से संवाद के दौरान यह अनुभव मिला। मेरा संवाद आम लोगों से गढ़वाली में ही रहा लेकिन उनकी तरफ से न समझने वाला कोई संकेत नहीं मिला, हाँ उनका जबाब स्थानीय के साथ हिंदी में जरूर था।

@ बलबीर राणा "अडिग"

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