मंगलवार, 28 मई 2013

गजल : कली का इन्तजार




कह दूँ दिल की बात
अभी दिन बाकी है

तस्बीर तेरी सपनो में संजो के रखूं
अभी रात बाकी है

तेरे मुहब्बत की दरिया में डूब जाऊ
अभी सावन का इन्तजार बाकी है

तेरे नाम का फूल गजरे में संवारूं
अभी बशंत आना बाकी है

सूखे होंठों पर लिपस्टिक लगाऊं
अभी तेरा स्पर्श बाकी है

दिल के तार झंकृत होंगे तब
तेरे सुर की सारंगी बजेगी जब

मन के तराने उड़ेंगे तब
तेरे प्यार की हवा बहेगी जब

फिर खोल दूंगी जिगर के द्वार
अभी कली का इन्तजार बाकी है

१ अप्रेल २०१३
रचना -: बलबीर राणा “भैजी”
© सर्वाध सुरक्षित





कोई टिप्पणी नहीं: