रविवार, 26 मई 2013

बिछुडा पंछी लोट आया

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आज बहुत दिनों बाद 
बिछुडा पंछी  
घोंषले   में लोट आया 
सुखद मनभावक  क्षणों को,
साथ लाया 
चरों तरफ बह रही 
प्रेम से सरोबार आवोहवा 
कल अनेक प्रश्न थे 
आज एक नहीं
न कोई शंसय न भ्रान्ति  
चमक उठी  मुखमंडलों आभा 
चूजों का कोलाहल
खिल उठी है दिलों की बगिया 
फैली सुमनों की सुगंध आँगन में  
आज क्षणिक क्षणों के लिए 
यह छोटा सा चमन महकने लगा 
फिर जल्दी पंछी उड़ जायेगा 
घोंषले से दूर हो जायेगा 
दाने चुगने चला जायेगा 
फिर संघर्षों और बिछोह दौर शुरू  हो जायेगा 

रचना -: बलबीर राणा "भैजी" 
२४ सितम्बर २०१२ 

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