पथ वो
पुराना गुजरा था जहां से याराना
बंसत
बयारों और सावनी फूहारों बीच
था
अपना वो प्रेम आशियाना
अंकुरित
हुआ था यौवन फूटे थे प्यार के बीज
दिलों
की हरियाली में ओंश की बूंद का चमकना
पथ वो
पुराना................
दिवस
प्रेम की खुमारी और
रात
अंगडाई का सफर था सुहाना
मधुबन
में बना था वह घराना
पथ वो
पुराना
ना
रहती थी आज की फिक्र
ना
होती थी कल की चिन्ता
चंचल
मन, नादान दिल से करते थे बेमानी
जेठ
की तपती दुपहरी में भी
रहता
अपने पन का शीतलतना
पथ वो
पुराना..........
अन्जान
रिश्ते की डोर
खिंची
थी पथ के दोना ओर
प्रेम
के कच्चे धागे से बंधा था जिगर का मोर
आज
समय के बाढ संग बह गया वो फसाना
अब वो
न प्यारा न यार रहा ना ही रहा याराना
आज भी
आँखो के सामने दिखता वो जमाना
पथ वो
पुराना…………….
12
फरवरी 2013
बलबीर
राणा ‘भैजी‘
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें