बुधवार, 29 मई 2013

जीवन पहाडे गरीबी भेंट चडि रैगे


आशा पर यु शांश चलणी रैगी,
यु ज्वानी तुमारू बाटु हैरदा रैगी, 
यकुली यकुली हिटदा थकिगियों,
ज्वानी मा कु उलार खुजाणी रैग्यों। 

दुनियां का भिभ्डाट देखी ज्यू घबराणु च, 
तिबरियों की सतीर पकड़ी लोकुं देखी ज्यू टबराणी रैगी,
अब यूँ आँखियों मा आंशु भी नी रेनी,
सुखियाँ आँखियों मा पाणी खोजदा रैगी।
आशा पर यु.............

सुबेरी कु घाम, पल्याँ डांडा मा अछैगी
हप्ता बटी, मेंना और शाल चलिगे,
नि च क्वी, चिठ्ठी पत्री नी भेजी क्वी रंत रैबार,
यु जिंदगी खुदेड हिलांस बणी की रैगी।
आशा पर यु...............


निर्भागी विधाता त्वेन क्या रचना रचाई,
एक घोल का पोथूलियों तें, जुदा करी क्या पायी,
तुमरी राजी खुशी लोकुं मा पूछी पूछी,
यु मेरु पराण, घुघूती जन घुराण रैग्याई।
आशा पर यु............

अब बांजे जडियों कु पाणी भी, हरचीगे  
बिरह की आग बुजाणी ,ये का बसे की नि रायी,   
अब त, ये पराणी तें भी एकुलांसे आदत पडीगै,
अब ये दुःख कैमा सुणान,
यु जीवन, पहाडे गरीबी भेंट चडि रैगे।
आशा पर यु शांश चलणी रैगी,
यु ज्वानी, तुमारू बाटु हैरदा रैगी, 


रचना : बलबीर रणा “भैजी”
२९ मई २०१३
© सर्वाध सुरक्षित

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