नेता जी गर प्रेम बरसाए हो तो,
फिर काहे को गरबगलाए हो ।जिन पहाड़ियों ने ताज़ पहनाया,
उन्हीं को क्यों गरियाए हो !
क्या बोले थे ये धरती किसकी ?
तुम साले पहाड़ियों की बिसात है?
तो सुनो नेता जी कान खोलकर!
ये हमारी बबोती, नहीं तुम्हें सौगात है।
सेवक हूँ हाथ जोड़ चुनाव लड़े हो,
पहाड़ की मिट्टी पर करोड़ों में खड़े हो।
पहाड़ी की बिल्ली पहाड़ को ही म्याऊँ,
सत्ता के नशे में जो तुम इतना तड़े हो?
सच्ची के पहाड़ी हो तो सुनो दगड़यौ,
गंगा यमुना के हो तो बिंगों दगड़यौ।
इन गालीबाजों को अब सबक सिखाना है,
बणियां-सणियों को अब नहीं बसाना है।
भूमी हमारी भुमियाळ हमारा,
फिर क्यों नहीं भू क़ानून हमारा?
मूल निवासी हो जाएंगे प्रवासी,
गैर क्यों बनेगा मालिक हमारा?
@ बलबीर राणा 'अडिग'
5 मार्च 25
प्रेमचंद्र अग्रवाल मंत्री उत्तराखंड के पहाड़ियों को गाली देने पर
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