तप्त धूप में नहाकर गाएँ,
नए सपनों का गीत।
कर्मप्रधान धरती बोले,
जागो! करो श्रम-सृजन प्रीत।।
नए सपनों का गीत।
कर्मप्रधान धरती बोले,
जागो! करो श्रम-सृजन प्रीत।।
स्नायुओं में दौड़े शोणित-उत्साह,
मन में हो दृढ़ विश्वास।
तरुण डग बढ़ेंगे निर्भीक जब,
तब भागेगा अकर्मण्य त्रास।।
मिट्टी गाएगी गीत समृद्धि का,
पर्वत बजाएगा विजयी शंख।
अखंड भारत, सशक्त भारत,
होगा विश्वगुरु, जगत-रंक।।
16 Sep 25
@अडिग

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