खुशियों के कुछ पलों के लिए
घोंसले में चहकता है पंछी
पंखो के बाहुपाश में समेटता
चमन को ।
चोंच टकराता
घरोंदे के ओर- छोर,
उमंग ढूंडता
जीतना चाहता अपने
मौन को ।
मस्तमंगल धुन में,
संसार के पराभव को
गाना चाहता
खुशी
की व्यंजना में
प्रेम
का शब्दावरण
पहनाना चाहता।
क्रूर
बाज के तीक्ष्ण निगाहों से
घरोंदे
को बचाना चाहता
बलबीर राणा
"भैजी"
३० सितम्बर २०१२
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना ...
Abhar Upreti jee
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